अक्सर सुर्खियों में रहनें वाले विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज प्रबंधन में तक़रीबन 02 से 03 वर्ष पूर्व हुए 82 लाख से अधिक के गबन मामले में दोषी चार अपचारी अधिकारीयों पर CSVTU की कमेटी एवं प्रशासन द्वारा कड़ी कार्यवाही की ख़बर सामनें आ रही है। जिन घोटालों में सुदीप श्रीवास्तव व गुरप्रीत सिंह शामिल हैं उन पर सुनवाई पश्चात कार्यवाही करते हुए विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज अम्बिकापुर में शासकीय ग़बन के मुल्ज़िम पाए जानें पर दोनों को ही सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है साथ ही उन्हें आगे कोई भी शासकीय सेवा नहीं मिलनें के आदेश भी तकनीकी विश्वविद्यालय नें जारी किया है।
वहीं इस मामले में शामिल दो अन्य अपचारी अधिकारीयों हरिशंकर चंद्रा व राजेश कुमार साहू के विरुद्ध भी वित्तीय अनियमत्ता के आरोप की पुष्टि हुई है, जिन्हें लोअर स्केल पर बहाल कर उनका डीमोशन किया गया और कुल 04 इन्क्रीमेंट से वंचित रखनें एवं 05 वर्ष तक इन्हें किसी भी तरह की वित्तीय व प्रशासनिक शक्तियाँ नहीं दिए जानें के आदेश जारी हुए हैं। इसके अतिरिक्त निलंबित रहे दोषियों को उस अवधि का वेतन भुगतान भी नहीं किया जायेगा। माननीय हाई कोर्ट बिलासपुर में चारो अपचारी अधिकारीयों के विरुद्ध 'CAVEAT' भी लगाया गया यह था।
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यह पूरा प्रकरण संत गहिरा गुरू विश्वविद्यालय के अधीन संचालन के समय वित्तीय वर्ष 2019-20 का था जब तत्कालीन कुलपति रोहिणी प्रसाद नें टीईक्यूआईपी प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी इन चारो को दी थी, उल्लेखनीय हैं कि शासन द्वारा उक्त कुलपति रोहिणी प्रसाद को भी धारा 52 के तहत विभिन्न अनियमित्ताओं के कारण बर्खास्त किया गया था।
आपको बता दें यह पूरा प्रकरण कॉलेज की ऑडिट के दौरान वर्ष 2019-20 के समय पकड़ में आयी थी तब तकनीकी विश्वविद्यालय (CSVTU) द्वारा लाखों के वित्तीय अनियमित्ता की विभागीय जाँच करायी गयी थी साथ ही पुलिस में भी चारों के विरुद्ध एफ़आईआर कराई गई थी।
क्या था पूरा मामला :
यह प्रकरण पूर्व विश्वविद्यालय के दरमियान का हैं ,जो छत्तीसगढ़ सरकार की एसपीआईयू ऑडिट में पकड़ा गया था और जाँच तकनीकी यूनिवर्सिटी भिलाई नें करायी थी। प्रभारी प्राचार्य डॉ राजेश कुमार साहू द्वारा तत्कालीन कुलसचिव की आपत्ति के बावजूद भी भुगतान हेतु स्वीकृत पत्र जारी किया गया था जिसमें क़रीब 30 लाख बिल पर दुकानदार ने अपनी लिखित शिकायत कुलसचिव को दी गई, जिसमें कहा गया था कि वह उनके बिल नहीं हैं और ना ही उन्हें भुगतान हुआ है। यह सभी कम्प्यूटर जनरेटेड फ़र्ज़ी बिल बनाए गए थे, काफ़ी दुकाने हैं ही नहीं फिर भी अपचारी अधिकारी नें भुगतान के आदेश जारी किए. मामले पर विभागाध्यक्ष नें लिखित में बताया था कि उन्होंने कोई माँग पत्र ही नहीं दिया तो सामान कैसे आ सकता है तथा कोई सामान भी स्टॉक पंजी में दर्ज नहीं था।
इस पूरे घोटाले में छात्रों के हित के कुल 82 लाख 79 हजार आठ सौ बारह (8,279, 812/-) रूपये का गबन विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज के चार प्रोफेसरों द्वारा किया गया था।
पूर्व में जारी हुए थे यह आदेश :
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इन चारों घोटालेबाज अपचारी अधिकारीयों को कार्य परिषद् ने निलंबित करते हुए इनके विरुद्ध उचित क़ानूनी कार्यवाही के लिए आदेश जारी किया था, एक जानकारी के अनुसार सीएसवीटीयू (CSVTU) की माननीय कार्य परिषद के निर्णयानुसार चारों के विरूद्ध छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) 1966 के नियम-10 के अंतर्गत दीर्घ शास्ति की कार्यवाही करना प्रस्तावित किया गया था जिसमें चारों घोटालेबाजों को मुख्य शास्ति/ दीर्घ शास्ति (Major Penalty) छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) 1966 के नियम 10 के खंड़ कमांक (नौ) व छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय अधिनियम 2004 (25) के परिनियम-32 की कन्डिका 26 (1) के खंड़ कमांक (g) के तहत अधिरोपित किया गया जिसमें यह उल्लेख है कि सेवा से पदच्युत किया जाना जो कि मामूली तौर पर शासन के अधीन भावी नियोजन के लिए अनर्हता होगी।
साथ ही जाँचकर्ता अधिकारी के प्रतिवेदन के आधार पर सभी आरोप अभिप्रमाणित / सिद्ध हुए थे जिनके आधार पर कार्यवाही की जाना प्रस्तावित था। कार्य परिषद नें आगे आदेशित किया था की चारों घोटालेबाजों को ऐसा अभ्यावेदन जिसे वे इस प्रस्ताव के विरूद्ध प्रत्युत्तर करना चाहते हों तो उन्हें 15 दिवस का समय दिया गया था ताकी वे कार्य परिषद के आदेश पारित करनें से 15 दिनों के भीतर अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत करें यदि वे ऐसा करने में असफल रहे तो यह माना जाएगा की वे अभ्यावेदन प्रस्तुत नहीं करना चाहते थे तथा ऐसी स्थिति में चारों घोटालेबाजों के विरूद्ध अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा एकपक्षीय आदेश पारित कर किया जाता।
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मिली जानकारी के अनुसार परिषद् नें इन चारों घोटालेबाज अपचारी अधिकारीयों के विरुद्ध पुलिस अधीक्षक (सरगुजा) को आवेदन दिया था जिसमें चारों घोटालेबाज प्रोफेसरों द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन को पहुंचाई गई आर्थिक हानि की वसूली के संबंध में कार्यवाही की बात की गई थी, उक्त आवेदन में चारों अपचारी अधिकारी जो की विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज, लखनपुर, अंबिकापुर में जुलाई 2020 से गंभीर वित्तीय अनियमित्ता के कारण निलंबनाधीन थे उनके विरुद्ध विश्वविद्यालय प्रशासन ने विभागीय जांच संस्थित की थी जिसमें सभी आरोप सिद्ध पाए गए थे साथ ही सभी को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा ( वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) 1966 के तहत पदच्युत की कार्यवाही भी प्रस्तावित की गई थी। इनके द्वारा विश्वविद्यालय को पहुंचाई गई आर्थिक हानि (गबन, उपेक्षा के कारण हानि तथा नियमों का प्रतिपालन न करने से हुई हानि आदि) की वसूली हेतु चारों के द्वारा गबन की गई राशि की जानकारी देते हुए वसूली करनें की बात पूर्व के आदेशों में कही गई थी।
इस पूरे घोटाले में छात्रों के हित के कुल 82 लाख 79 हजार आठ सौ बारह (8,279,812/-) रूपये का गबन विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज के चार प्रोफेसरों द्वारा किया गया था जिसमें गुरप्रीत सिंह नें 1,905,696 /- सुदीप श्रीवास्तव नें 1,905,696 /- हरिशंकर चंद्रा नें 1,408,606 /- एवं राजेश साहू नें 3,059,814 /- रूपये के घोटाले को अंजाम दिया था जो छात्रों के हक़ व हित में उपयोग की जानी थी।
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