Big News :- क्या आप सभी जानते हैं महात्मा या संत बनने के बाद अपने माता-पिता को प्रणाम क्यों नहीं करते जानिए रहस्यमय उत्तर...-

Big News :- क्या आप सभी जानते हैं महात्मा या संत बनने के बाद अपने माता-पिता को प्रणाम क्यों नहीं करते जानिए रहस्यमय उत्तर...-

PIYUSH SAHU (BALOD)
@ बालोद // पीयूष कुमार साहू।।
प्रतिदिन की भांति संत  राम बालक दास के द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके विभिन्न वाट्सएप ग्रुप में आज सुबह 10 बजे  किया गया जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कीये।
             सत्संग परिचर्चा में खेम सिंह वर्मा ने जिज्ञासा रखते हुए गुरुदेव से पूछा कि 
,कलियुग मे हरि भक्त गरीब और दुराचारि धनवान होता है ऐसा क्यों गुरुदेव।, बाबा जी ने स्पष्ट किया कि ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि धन तो चंचला है, लक्ष्मी का रूप ही चंचल होता है ना तो वहां धार्मिक के पास रूकती है ना ही वह पापी के घर,लेकिन  भक्तों के पास जो अमूल्य निधि होती है वह किसी धनवान के पास नहीं होती, भारत देश में ऐसे करोड़पतियों की कमी नहीं जो पूर्ण रूप से सदाचारी है एवं भक्त हैं वैसे भक्त कभी भी गरीब नहीं होता।
 संसार में सबसे बड़ी गरीबी तो दरिद्रता की होती है क्योंकि कोई कितना भी बड़ा धनवान क्यों ना हो जाए यदि वहां दरिद्रता का वास है तो धन भी व्यर्थ है।
                  प्रतिदिन की भांति कबीर जी की वाणी पर पाठक परदेसी जी की जिज्ञासा प्रस्तुत हुई की 
      जग में युक्ति अनूप है, साधु संग गुरु ज्ञानl
ता में निपट अनूप है, सद्गुरु लागा कान, इस दोहे के भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि वैसे तो ईश्वर से मिलने की बहुत युक्ति एवं साधन संसार में उपलब्ध है जैसे भजन पूजन साधना परंतु साधु संतों का संग और गुरु का ज्ञान मिल गया तो वह अनुपम है जिसका कोई सानी नहीं इसके जैसा कोई दूसरा रास्ता नहीं इसमें भी महत्वपूर्ण है कि वह जो सद्गुरु हमारे कानों में कहते हमें बीज मंत्र दे दीक्षित करते हैं वह हमें मोक्ष दिलाता है 
              प्रेमचंद साहू के द्वारा एक छोटे से मन भाव को प्रस्तुत किया गया  महात्मा बनने के बाद संतगण अपने माता पिता का प्रणाम क्यों नहीं करते हैं इस पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे गुरुदेव,  मन भावों का प्रत्युत्तर देते हुए बाबा जी ने बताया कि प्रणाम का अर्थ केवल हाथों से पैरों को छुना ही नहीं होता ह्रदय से श्रद्धा से झुकना भी प्रणाम ही है परंतु लोक व्यवहार में संत बनने पर माता-पिता को प्रणाम नहीं किया जाता और ना ही माता पिता अपने पुत्र को प्रणाम करते हैं बस हाथों को जोड़कर  अभिवादन करते हैं जय सियाराम ही करते हैं, जिसमें पिता पुत्र का प्रेम सर्वदा निहित होता है।  
                  राजकुमार यादव  ने जिज्ञासा रखी की 
शनि सबके पीर है शनि सबके दाता ,शनि चाहे तो बना दे राजा से रंक  चाहे तो बना दे रंक से राजा, शनि से बना कर चलिए शनि सब के भाग्य विधाता इस पर प्रकाश डालने की कृपा करें गुरु देव क्या शनि देव की कुदृष्टि रहता है क्या?, इस पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि भगवान शनि देव न्याय के देवता है उनसे कभी भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है वे तो केवल दंडनायक है जो धर्म और अधर्म के पक्ष को देखकर न्याय करते हैं न्याय विधाता है यह केवल पाखंडियों की दुकानदारी चलाने हेतु फैलाई गई भ्रान्तियाँ  है जो आपको उनका डर दिखाकर पैसा कमाते हैं।
 इस प्रकार आज का सत्संग संपन्न हुआ।
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