राजधानी में बाहरी मरीज की मौत के बाद परिजन शव के लिए भटके इसलिए प्रशासन ने अब बनाया 24 घंटे में शव भिजवाने का सिस्टम

राजधानी में बाहरी मरीज की मौत के बाद परिजन शव के लिए भटके इसलिए प्रशासन ने अब बनाया 24 घंटे में शव भिजवाने का सिस्टम

Avinash

प्रदेशभर से कोरोना के गंभीर मरीज रायपुर के अस्पतालों में रेफर किए जा रहे हैं। जिनकी मृत्यु हो रही है, उनके परिवार भटकने लगे हैं कि शव कैसे और कब मिलेगा, तथा उनके शहर-गांव तक किस तरह भेजा जा सकेगा। रायपुर में पिछले एक हफ्ते से रोजाना ही प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों के औसतन दर्जनभर गंभीर मरीजों की मृत्यु हो रही है और परिजन शव के लिए भटकते रहते हैं। लेकिन अब ऐसे शवों के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। चूंकि प्रोटोकाॅल के तहत कोरोना मृतक का शव परिजन को नहीं सौंपा जाता, इसलिए प्रशासन ने मौतों को नोटिफाई करने से लेकर यहां से शव रवाना करने का एक सिस्टम बना लिया है। इस वजह से अब मृत्यु के 24 घंटे के भीतर ऐसे सभी कोरोना मृतकों का शव उनके गृहक्षेत्र में पहुंच जाएगा, जिनकी मृत्यु को लेकर कोई संदेह नहीं बचा हो।
किसी भी अस्पताल में कोरोना से मृतक का शव लेना आसान नहीं है। इसी परेशानी को देखते हुए शासन ने एक टीम बना दी है, जिससे शव को संबंधित जिलों में भेजने में सुविधा हो। उदाहरण के लिए प्रदेश के सबसे बड़े अंबेडकर अस्पताल में अधीक्षक, सीएमओ के अलावा कोरोना वार्ड के डॉक्टरों का एक वाट्सएप ग्रुप बना है। कोरोना वार्ड में मौत होते ही इसकी सूचना ग्रुप में डाल दी जाती है। फिर अस्पताल अधीक्षक नोटिफिकेशन करता है। इसके बाद संबंधित जिले के अधिकारी एसडीएम या तहसीलदार को मौत की सूचना भेजी जाती है। शव मुक्तांजलि वाहन से भेजा जाता है। अगर मौत शाम या रात को हुई है, तो कागजी कार्रवाई करने में देरी होती है। ऐसे में शव मर्चुरी भिजवाया जाता है। अंबेडकर अस्पताल की मर्चुरी में दो तरह की व्यवस्था की गई है। दो हिस्सों में शव रखा जाता है। काेरोना मरीजों के शव के लिए अलग व्यवस्था है। ताकि सामान्य शव के साथ रखे जाने पर संक्रमण न हो। अगर मेडिको लीगल केस है तो शव का पोस्टमार्टम जरूरी है। लेकिन कई मामलों में परिजनों की मांग पर शव का पोस्टमार्टम नहीं किया जा रहा है। इसमें परिजनों को अधीक्षक को आवेदन देकर पीएम नहीं कराने की बात लिखनी होती है।

अब आरटीपीआर रिपोर्ट का इंतजार नहीं
भास्कर में खबर प्रकाशित होने के बाद सितंबर में एसीएस हेल्थ रेणु पिल्लै ने संदिग्ध शवों का अंतिम संस्कार कोरोना के प्रोटोकॉल के अनुसार करने का निर्देश जारी किया था। यानी डॉक्टर को लगे कि मरीज को कोराेना हो सकता है तो आरटीपीसीआर रिपोर्ट के इंतजार किए बिना शव को डिस्पोज किया जा सकता है। इसका फायदा हो रहा है कि मर्चूरी में शवों का ढेर लगभग खत्म हो गया है। दरअसल आरटीपीसीआर रिपोर्ट आने में तब दो से तीन दिन लग रहा था। इससे संदिग्ध मरीजों के शव का ढेर लग रहा था। सितंबर में एक दिन में 32 से 42 शव रखे हुए थे, जिससे ढेर लग गया था। इसके बाद शासन ने एक्शन लिया था।

देरी पर परेशान हैं परिजन
कोरोना के संदिग्ध मरीजों के शव मर्चुरी में रखवाया जाता है। जब तक रिपोर्ट नहीं आती, तब तक शव संबंधित जिलों में रवाना नहीं किया जाता। इससे परिजन परेशान होते हैं। कई परिजनों का दबाव होता है कि शव का अंतिम संस्कार गांव में करवाना है। ऐसे में शव को डिस्पोज भी नहीं किया जा रहा है। यह परिवार की भावना से जुड़ा मामला है इसलिए शव संबंधित जिलों में भेजकर अंतिम संस्कार करवाया जा रहा है।



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तस्वीर अगस्त के महीने की रायपुर की है। यहां तेजी से बढ़ी कोरोना मरीजों की मौतों के बाद मॉरचुरी में शव रखने की जगह नहीं बचीं तो शवों को स्ट्रेचर पर बाहर निकाल कर खुले में रख दिया गया। स्थिति ऐसी हो गई कि अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंची 10 लाशों को लौटाना पड़ गया।


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