@ छत्तीसगढ़
परमपूज्य गुरू घासीदास बाबा जी के द्वतीय सुपूत्र गुरू बालकदास जी का जन्म, भादो महीना के कृष्ण पक्ष के अष्ठमी "जन्माष्मी" के दिन हुआ था । सतनामी समाज पहले जैतखाम और घर में स्थापित निशाना में जन्माष्टमी के दिन ही झंडा चढ़ाते थे जिसे पालो चढ़ाना कहा जाता है ।
गुरू बालकदास जी,..... गुरू घासीदास जी के साथ सामाजिक बुराइयों को दुर कर समाज को दिशा देने में लगे थे जिसके लिये महंत, राजमहंत, दीवान, भंडारी, साटीदार आदि सामाजिक पद बनाकर सतमार्ग पर चलाने के लिये सामाजिक नियम बनाये और लोगों को उस नियम पर चलने के लिये अनवरत कार्य करते रहे ।
गुरू बालकदास जी,..... गुरू बंशावली की गरिमा को बनाये रखते हुये गुरूजी के अनुयायियों को एकजुट करने में सफल हुये ।
गुरू बालकदास जी रामत के रूप में गाड़ी, घोड़ा, हाथी के साथ अपने महंतो, दीवानो को लेकर निकलते थे । समाज सुधार के साथ सामाजिक न्याय भी करते थे और अभियुक्त को दंड भी दिया करते थे ।
गुरू बालकदास जी कुँआ बोड़सरा को अपना कार्य स्थल चुने, गुरूजी का बहुतायत समय रामत घुमने में ब्यतित हुये ।
गुरूजी का विवाह ढारा नवलपुर (बेमेतरा) के निवासी मोतीलाल की सुपुत्री नीरा माता के साथ हुआ । नीरामाता, भूजबल महंत के बहिनी थी । उसी वर्ष गुरूजी ने चितेर सिलवट के बेटी राधा संग भी ब्याह किये । गुरूजी और राधा माता से साहेबदास और बड़ी पत्नी नीरामाता से गंगा और गलारा नाम की दो पुत्री हुई ।
भंडारपुरी में गुरूजी ने चौखण्डा महल बनवाया जिसमें तलघर, राजदरबार, मुसाफिर खाना, पूजा स्थल, उपचार गृह, दीक्षा गृह आदि बनवाये ।
महल में स्वर्ण कलश और अंगना में जोड़ा जैतखाम का स्थापना किये जिसमे एक जैतखाम को चंदा और दूसरे का नाम सूरज रखा गया।
गुरूजी रामत घुमते समय संतो को उपदेश के साथ साथ सतनाम की दीक्षा भी देते थे, जनेऊ पहिनाये, कंठी बांधे इस तरह समाज को सतनाम धर्म के सच्चे अनुयायी बनाते गये ।
सतनामी एवम् सतनाम धर्म संस्कृति :-
सत से तात्पर्य मुख्य कार्य और नामी से तात्पर्य पहचान । जिस तरह लोहे के कार्य करने वाले को लुहार, कपड़ा धोने के कार्य करने वाले को धोबी, रखवाली करने वाला को रखवाला, गाना गाने वाले को गायक, नृत्य करने वाले को नृतक, नशा करने वाले को नशेड़ी, शराब पिने वाले को शराबी, पोथी पुराण के ज्ञानी को पंडित, राज करने वाले को राजा, सेवा करने वाले को सेवक, तपस्या करने वाले को तपस्वी, ठीक उसी तरह "सतकर्म" करने वाले को "सतनामी" कहते हैं।
सतनामी नही तो जाति है और नही कोई धर्म, वह तो सतनाम के मानने वालो की पहचान है जिसे आज सतनामी जाति के नाम से जाना जाता है । सतनामी वह है जिसका कर्म सत्य पर आधारित हो और जो सतनाम धर्म को मानता हो ।
सतनाम धर्म में छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच, छुआ-छुत का कोई स्थान नही है । सतनाम धर्म मानवता वाद पर आधारित है । बाबा गुरू घासीदास जी ने सतनाम धर्म का ब्याख्या इस रूप में किये हैं :
"मानव-मानव एक समान"
मनखे मनखे एक ये, नइये कछु के भेद ।
जउन ह मनखे ल एक मानीस, उही मनखे ह नेक ।।
सतनामी धर्म संस्कृति का मुख्य विशेषतायें निम्न है ।
1. सतनाम धर्म प्रत्येक मानव को मानव का स्थान देता है।
2. सतनाम धर्म में न कोई छोटा और न कोई बड़ा होता है, इसमें सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है ।
3. जो ब्यक्ति सतनाम् धर्म को ग्रहण कर लेता है, उसके साथ उसी दिन से समानता का ब्यवहार जैसे बेटी देना या बेटी लेना प्रारम्भ हो जाता है ।
4. सतनाम् धर्म किसी भी जाति या धर्म का अवहेलना नही करता ।
5. सतनाम् धर्म हमेशा सच्चाई के पथ पर चलने की शिक्षा देता है ।
6. सतनाम् धर्म का प्रतीक चिन्ह जैतखाम है ।
7. सतनाम् धर्म में 7 अंक को शुभ माना जाता है ।
8. सतनाम् धर्म के मानने वाले दिन सोमवार को शुभ मानते है, इसी दिन परम पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी का अवतार हुआ था ।
9. सतनाम् धर्म में गुरू गद्दी, सर्व प्रथम पूज्यनीय है ।
10. सतनाम् धर्म के मानने वाले एक दुसरे से मिलने पर "सतनाम" कहकर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं ।
11. सतनाम् धर्म में सत्यपुरूष पिता सतनाम् को सृष्टि का रचनाकार मानते हैं ।
12. सतनाम् धर्म में प्रत्येक ब्यक्ति "स्त्री-पुरूष" जिसका विवाह हो गया हो उन्हें "नाम पान" लेना (कान फुकाना) अनिवार्य है ।
13. सतनाम् धर्म में पुरूष को कंठी-जनेऊ और महिलाओ को कंठी पहनना अनिवार्य है ।
14. सतनाम् धर्म में मृत ब्यक्ति को दफनाया जाता है ।
15. सतनाम् धर्म में पुरूष वर्ग का दशगात्र दश दिन में और महिला वर्ग का नौवे दिन में किया जाता है ।
16. सतनाम् धर्म में मृतक शरीर को दफनाने के लिये ले जाने से पहले पुरूष वर्ग को पूर्ण दुल्हा एवं महिला वर्ग को पूर्ण दुल्हन के रूप में श्रंृगार करके ले जाया जाता है ।
17. परिवार के कुल गुरू जिससे कान फुकाया "नाम पान" लिया रहता है साथ ही मृतक के भांजा एवं जगतगुरु के नाम से दान पुण्य दिया जाता है ।
18. माताओ को जब पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है तो उसका छठ्ठी का कार्यक्रम जन्म के पांचवे दिन किया जाता है।
19. सतनाम् धर्म में महिलाओ को पुरूष के जैसा हि समानता का अधिकार प्राप्त है ।
20. सतनाम् धर्म में लड़के वाले, पहले लड़की देखने जाते हैं ।
21. सतनाम् धर्म में दहेज लेना या दहेज देना पूर्ण रूप से वर्जित है ।
22. लड़के वाले लड़की पक्ष के परिवार वालो को नये वस्त्र देता है साथ ही दुल्हन को उसके सारे सृंगार का समान दिया जाता है ।
23. सतनाम धर्म में सात फेरे होते हैं जिसमें दुल्हन, दुल्हे के आगे आगे चलती है ।
24. सतनाम् धर्म में शादी होने पर सफेद कपड़ा पहनाकर तेल चढ़ाया जाता है ।
25. दुल्हे का पहनावा "जब बारात जाता है" सफेद रंग का होता है । पहले मुख्य रूप से सफेद धोती, सफेद बंगाली और सफेद पगड़ी का चलन था परन्तु आज कल लोग अपने इच्छानुसार वस्त्र का चुनाव कर रहे हैं जिसे समाज स्वीकार कर चूका है।
26. दुल्हन के साड़ी व ब्लाउज हल्का पिले रंग का होता है आजकल इसमें भी बदलाव आया है जिसे समाज स्वीकार कर चूका है।
27. सतनाम् धर्म में स्वगोत्र के साथ विवाह करना सक्त मना है ।
28.सतनाम् धर्म संस्कृति के अनुयायी सतनामी समाज, गुरु घासीदास बाबाजी के प्रमुख सात उपदेशों को जीवन में अपनाने पर विशेष बल देते है :
A. सतनाम् पर विश्वास रखना ।
B. जीव हत्या नही करना ।
C. मांसाहार नही करना ।
D. चोरी, जुआ से दुर रहना ।
E. नशा सेवन नही करना ।
F. जाति-पाति के प्रपंच में नही पड़ना ।
G. ब्यभीचार नही करना ।
कुल मिलाकर सतनाम धर्म संस्कृति का ब्याख्या इस रूप में किया जा सकता है .....
दो हाथ, दो पैर, दो कान, दो आँख, एक मुँह और हाड़ मांस के साथ जन्मे प्राणी को, वास्तव में मानव वाली कर्म कराके, शुद्ध रूप से मानव बनाने की संस्कृति है।
सतनामी समाज के प्रत्येक गांव में गुरू गोसाईं बालकदास जी की जयंती मनाई गई शिवपुरी,कातलवाही, छपारा,गातापार ,मनकी,खुर्शीपार ,बिल्हारी, छछानपहरी,बासुला पदुमतरा, सहित सतनामी समाज के गांवों में पंथी , बाईक रैली,अखाड़ा के हर्ष उल्लास के दास गुरु जी के बारे में बताया। समाज के कुछ प्रमुख जिला अध्यक्ष सुर्य कुमार खिलाड़ी,जे पी रात्रे , खुमान देशलहरा, जितेंद्र गेन्डरे, सुरेश गेन्डरे, पंचराम चंदेल ,राजू कौशिक, राजकुमार मण्डले,दिपक जोशी ,भजनू चंदेल,भोला गायगवाल ,बन ऊ जोशी, सुंदर लाल चतुर्वेदी , संजय कुर्रे,कलेश्वर साण्डे , आनंदी चंदेल,अजय मारकाण्डे, पंकज बांधे रमेश महिलागे हेमेश जांगड़े उपस्थित रहे।