देवी-देवताओं के नाम पर बलि देने वाले हो जाएं सावधान (Alert) ... बलि प्रथा को है एक कुप्रथा - रामबालक दास...

देवी-देवताओं के नाम पर बलि देने वाले हो जाएं सावधान (Alert) ... बलि प्रथा को है एक कुप्रथा - रामबालक दास...

PIYUSH SAHU (BALOD)
@बालोद//पीयूष कुमार साहू।।

मन की विभिन्न भावो और प्रेम की धारा लिए हुए ज्ञान से ओतप्रोत श्री संतराम बालक दास के द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन प्रतिदिन उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में प्रातः 10:00 बजे किया जाता है 1 घंटे का यह आयोजन सभी के लिए ज्ञान का केंद्र है जिसमें समसामयिक, वैज्ञानिक तो धार्मिक एवं राष्ट्र से लेकर सामाजिक सभी गतिविधियों पर विवेचन एवं परिचर्चा की जाती है, राम बालक दास जी के सानिध्य में जुड़े हुए भक्तगण अपनी जिज्ञासा  के द्वारा प्राप्त समाधान से अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं।
             आज की सत्संग पर विनती करते हुए कहा कि क्या इस का सर्वप्रथम विरोध गौतम बुद्ध जी एवं महावीर स्वामी जी के द्वारा ही किया गया था, संवेदनशील विषय पर अपनी वाणी को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि समय चाहे कोई भी हो वैदिक काल हो पौराणिक  हो आध्यात्मिक हो या आधुनिक इसका दूसरा पक्ष भी सदैव रहा है रावण  रहा है तो राम भी हुए हैं, रामायण में यह बताया गया है कि मेघनाथ ने कई भैसों की बलि दी तो हम भी यही करें तो यह अनुचित ही होगा क्योंकि वह तो दानव था और रामायण में श्रीराम भी है आप उनके चरित्र का अनुसरण करें ना कि राक्षस का, वैदिक काल में दुष्ट राजा हुआ करते थे जिनका अनुसरण हमें नहीं करना हमें तो आदर्श चरित्र  को ग्रहण करना है। 
                  अनुचित होगा, गौतम बुद्ध महावीर स्वामी के पहले हमारे भगवान राम कृष्ण हमारे ऋषि मुनि सभी अहिंसक थे क्या उन्होंने अहिंसा की बात नहीं कही होगी क्या अहिंसा का पूर्व में कोई विचार नहीं था क्या सभी जानवर थी तो ऐसा सब कुछ विशेष कुछ विशेष पक्ष के अनुयायियों  के ही कारण होता है जो विशेष धर्म को मानते हैं और हमारे सनातन धर्म का अपमान करते हैं, संत कबीर जी कभी किसी का विरोध नहीं करते थे वे परम राम भक्त थे अतः जो हमारे भगवान का मजाक उड़ाते हैं संत गणों का मजाक उड़ाते हैं वह कभी भी कबीर पंथी  नहीं हो सकते वे केवल और केवल एक विषय को लेकर अपनी दुकान चला रहे हैं बुद्ध जी के पूर्व यदि यह सदाचार और यह अहिंसा का पाठ नहीं होता तो स्वयं बुद्ध जी को यह प्रेरणा कहां से मिलती जिसको आज उन्होंने पूरे विश्व में प्रसारित किया है।
         बलि प्रथा और हिंसा का सदैव ही विरोध रहा है देवी देवता के नाम पर उस समय भी पाखंड था जिसके कारण रावण का मेघनाथ जैसे ज्ञानी लोग भी बलि देते थे लेकिन भगवान राम ने उस समय पर भी हत्या का विरोध ही किया।
                परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए रामेश्वर वर्मा ने रामचरितमानस की चौपाइयां 
संत सहहिं दुख पर हित लागी।पर दुख हेतु असंत अभागी।।भूर्ज तरु सम संत कृपाला।पर हित निति सह बिपति बिसाला।। इस चौपाई पर प्रकाश डालने की विनती की, इसके भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने संत और असन्त में बहुत अंतर बताया है जो नित नवीन रामकथा को सुनते हैं उनको नित नवीन प्रसंगों का ज्ञान प्राप्त होता है जरूरी नहीं कि आप धनवान हो रूपवान हो आपके पास अच्छे-अच्छे आभूषण हो दिखावे के लिए वस्त्र हो, आवश्यक यह है कि आपकी वाणी अच्छी हो आपके पास गुण अच्छे हो सदाचारी हो इसीलिए कहा जाता है कि साधु संतों का रूप नहीं देखना चाहिए उनका गुण देखकर उनका परिचय करना चाहिए
 इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग पूर्ण हुआ।
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