केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों के ख़िलाफ़ श्रमिक संगठन सीटू के राष्ट्रीय सचिव तथा जेबीसीसीआई मेंबर डी डी रामानंदन ने पत्रकार वार्ता में रखी अपनी बात...

केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों के ख़िलाफ़ श्रमिक संगठन सीटू के राष्ट्रीय सचिव तथा जेबीसीसीआई मेंबर डी डी रामानंदन ने पत्रकार वार्ता में रखी अपनी बात...

@भटगांव//शशी रंजन सिंह।।
केंद्र सरकार आपदा में अवसर की नीति के तहत कोलइंडिया और कोयला उद्योग को बर्बाद करने पर तुली हुई है। केंद्र सरकार के मजदूर व किसान विरोधी नीतियों की वजह से देश इन दिनों बर्बादी के कगार जा पहुँचा है। केंद्र सरकार लगातार सरकारी उद्योगों को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ निजी हाथों में देखकर कोल इंडिया को बर्बाद करने में तुली हुई है। सरकार का मंशा कोयला उद्योगों को अपने चहेते निजी उद्योगपतियों को कोयला उद्योग सौप उत्पादन  बढ़ाकर देश की तरक्की नहीं करानी है। बल्कि असली मकसद सिंगल विंडो सिस्टम का लाभ ले कर से पीछे के दरवाजे से बैंक को लूटना है। केंद्र सरकार कोयला उद्योगों के नाम पर देश के प्रमुख उद्योगपतियों को कोयला खदान और उसको चलाने के लिए बैंक से ऋण स्वरूप पैसा देकर बैंक और देश की संपत्ति को लूटना ही उनका मुख्य मकसद है। उक्त बातें श्रमिक संगठन सीटू के राष्ट्रीय सचिव तथा जेबीसीसीआई मेंबर डी डी रामानंदन ने भटगांव गेस्ट हॉउस में यूनियन द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान अपनी बातों को प्रमुखता से रखा।

उन्होंने आगे कहा कि इस वक्त कोयला उद्योग सहित सभी प्रमुख सरकारी उद्योग व उपक्रमो के ऊपर भारी संकट मंडरा रहा है। केंद्र सरकार की नीति कमर्शियल माइनिंग को बढ़ावा देना की है और इम्पोर्ट को कम करने की जिसके तहत कोयला खदान निजी उद्योगपतियों को दिया जा रहा है। इससे देश और मजदूरों का भला नहीं होने वाला है, सिर्फ और सिर्फ उद्योगपतियों का भला होना है। मजदूरों का इसमें हित नहीं अहित है। आजादी के बाद सबसे बुरे दौर से देश का उद्योग, किसान और मजदूर गुजर रहे है. किसान और मजदूर लगातार आंदोलन कर रहे है पर सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है। वैसे भी भारत में कोयला उद्योगों का भविष्य बहुत ज्यादा नहीं है लगभग 30 से 35 वर्षों में ही कोयला का ईंधन के रूप में इस्तेमाल होना बंद हो जाएगा। लेकिन इस सरकार की नीतियों की वजह से लगता है कि कोयला उद्योग उससे पहले ही समाप्त हो जाएगा।

श्री रामानंदन ने केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि अगर आप आंकड़े उठा कर के देखेंगे तो केंद्र सरकार ने अभी तक जितने भी निजी उद्योगपतियों कोयला खदान आवंटित किए हैं। उनमें से अधिकांश लोगों ने अभी तक कोयला उत्पादन शुरू नहीं किया है। निजी उद्योगों का मकसद सिर्फ और सिर्फ सरकारी संपत्ति की लूट करना है। देश में 60 हजार मिलियन टन का कोयला का भंडार है और प्रतिवर्ष 14 हजार मिलियन टन का उत्पादन हो रहा है। इस अनुपात से अनुमान लगाया जाए तो देखने को मिलेगा, कि जल्द ही कोयले की उपलब्धता भारत में खत्म हो जाएगी और यह उद्योग बंद हो जाएगा। सरकार लगातार कोयला ब्लॉकों की नीलामी कर रही हैं. निजी कोयल ब्लॉक लेने वाली कंपनियों के यहां मजदूरों के हित सुरक्षित नहीं है। जिस तरह से आज कोल इंडिया में कार्यरत मजदूरों के हित सुरक्षित हैं उनकी सुख सुविधाओं का ध्यान दिया जाता है,ऐसा निजी खदान में मजदूरों के साथ नहीं होने वाला है। हमारा उद्देश्य कोयला उद्योग, मजदूर व देश के किसानों को बचाने है। जिसके लिए हम सदैव संघर्षरत रहे हैं और आगे भी रहेंगे। पत्रकार वार्ता में उनके साथ सीटू के वरिष्ठ श्रमिक नेता जी एस सोढ़ी भटगांव के क्षेत्रीय महासचिव अजय शर्मा, क्षेत्रीय कल्याण समिति सदस्य एच एन ओझा मौजूद थे।
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