अबूझ मुहूर्त इसलिए शादी करने के लिए पूरा दिन रहेगा श्रेष्ठ, इस बार एकादशी पर सिद्धि, महालक्ष्मी और रवियोग का संयोग

अबूझ मुहूर्त इसलिए शादी करने के लिए पूरा दिन रहेगा श्रेष्ठ, इस बार एकादशी पर सिद्धि, महालक्ष्मी और रवियोग का संयोग

Avinash

बुधवार को देवउठनी एकादशी है। यानी देव विवाह का दिन। घरों में गन्ने के मंडप सज चुके हैं। शाम को गोधुली बेला में तुलसी और शालिग्राम सात फेरों में बंधेंगे। जगह-जगह आतिशबाजी होगी। घराें में पकवान बंटेंगे। मंदिरों में भी विशेष पूजा-अर्चना की तैयारी है।
दरअसल, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि चातुर्मास के 4 माह विश्राम के बाद भगवान विष्णु इसी दिन जागते हैं। हालांकि, अधिकमास की वजह से इस बार चातुर्मास 5 महीने का था। देवउठनी एकादशी पर घरों में तुलसी चाैरे के सामने गन्ने का मंडप सजाकर भगवान विष्णु की शालिग्राम के रूप में स्थापना होगी। शाम को धूमधाम से दोनों का विवाह कराया जाएगा। इधर, श्रीहरि के निद्रा से जागते ही 5 माह से मांगलिक कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी हट जाएगा। विवाह समेत सभी मंगल कार्यों की शुरुआत हो जाएगी। ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्केरे बताते हैं कि इस बार एकादशी पर सिद्धि, महालक्ष्मी और रवियोग बन रहे हैं। इन 3 शुभ योगों से देव प्रबोधिनी एकादशी पर की जानी वाली पूजा का अक्षय फल मिलेगा। कई सालों बाद एकादशी पर ऐसा संयोग बना है। एकादशी तिथि बुधवार को सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय तक रहेगी।

विष्णु की अनन्य भक्त वृंदा, पहले शिव के अंश जलंधर से हुई थी शादी
पं. मनोज शुक्ला ने बताया, वृंदा विष्णु की अनन्य भक्त थीं। उनका विवाह शिवजी के तेज से पैदा हुए जलंधर से हुआ था। जलंधर शक्तिशाली था। वह इंद्र को पराजित कर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा। देवताओं के निवेदन पर शिवजी ने समझाना चाहा तो जलंधर ने उनका भी उपहास उड़ाया। शिव और जलंधर का युद्ध हुआ जो लंबे समय तक चलता रहा। शिव जानते थे कि जलंधर की पत्नी वृंदा सत्य, त्याग और तपस्या की मूर्ति है इसलिए जालंधर का वध कठिन है। तब विष्णुजी जलंधर का रूप लेकर वृंदा के पास चले गए और साथ ही रहने लगे। इधर, सतीत्व भंग हो जाने पर शिवजी ने जालंधर का वध कर दिया।

फिर तुलसी के रूप में वृंदा व शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु का हुआ विवाह
वृंदा को जब पता चला कि उनके पति को छल से मारा गया है तो उन्होंने विष्णु से इसकी वजह पूछी। विष्णु चुपचाप खड़े रहे। क्रोधित होकर वृंदा ने विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। लक्ष्मी ने अपने पति विष्णु को श्राप से मुक्त कराने वृंदा से विनती की। वृंदा ने विष्णु को हमेशा अपने पास रहने की शर्त पर इस श्राप से मुक्ति दी और खुद सती हो गईं। वृंदा की राख से नन्हें पौधे ने जन्म लिया। ब्रह्माजी ने इसे तुलसी नाम दिया। यही पौधा सती वृंदा का पूजनीय स्वरूप तुलसी हो गया। विष्णु ने भी तुलसी को हमेशा शालिग्राम के रूप में साथ रहने का वरदान दिया।

घर में ऐसे करें तुलसी पूजा
तुलसी चौरा के आसपास लिपाई-पुताई कर रंगोली सजाएं। तुलसी के पास ही चौकी या पीढ़ा रखें और सिंहासन पर शालिग्राम को रखें। गौरी गणेश रखें। एक कलश में जल भरें और इसमें आम पत्ता, दूर्वा, सिक्का, हल्दी, सुपारी, अक्षत आदि डालें। इसके ऊपर दोना में सफेद चावल रखकर दीपक रखें। गन्ने का मंडप बनाकर तोरण आदि सजा लें। सूर्यास्त के समय घर-आंगन को दीपावली की तरह दीयों से सजाएं। कलश का दीपक जलाकर त्रिआचमन, हस्तोप्रक्षालन, पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, मंगल श्लोक पाठ करें।

इस मंत्र से लें संकल्प...
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥’
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठो त्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’



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Abuja Muhurta is why the whole day will be best to get married, this time coinciding Siddhi, Mahalakshmi and Raviyog on Ekadashi.


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