
कोरोना काल में 22 हेल्थ और मेडिकल स्टॉफ की मृत्यु के बाद उनके परिवार को मिलने वाला ग्यारह करोड़ का मुआवजा अटक गया है। मई से सितंबर के बीच केंद्र सरकार को भेजे गए मुआवजों के प्रस्तावों में केवल तीन ही मंजूर किए गए हैं। दो प्रकरण नामंजूर कर दिए गए। क्लेम के लिए भेजे गए प्रस्ताव में पांच प्रकरण डॉक्टरों और बचे हुए 17 केस मेडिकल, नर्सिंग स्टॉफ और लेब टेक्नीशियन के हैं। अस्पताल और फील्ड पर काम करने वाले कोरोना फ्रंट लाइन वॉरियर के लिए केंद्र सरकार की ओर से पचास लाख मुआवजे का प्रावधान रखा है।
कोरोना वारियर्स के तौर पर सेवाएं देने वाले मेडिकल स्टाफ की मृत्यु के बाद राज्य सरकार की ओर से प्रकरण भेजे जाते हैं। इसके बाद केंद्र सरकार नोडल इंश्योरेंस एजेंसी को पड़ताल के लिए भेजती है। इंश्यारेंस एजेंसी को ही मुआवजे को मंजूरी देने का अधिकार है। राज्य की ताजा स्थिति के अनुसार ग्यारह करोड़ के मुआवजा प्रस्तावों में से केवल डेढ़ करोड़ के तीन प्रस्ताव को ही मंजूरी मिल पाई है। जबकि बाकी मामलों में लंबे समय से इंश्योरेंस कंपनी की पड़ताल चल रही है। जिन प्रकरणों को मंजूर किया गया है उसमें धमतरी के एक डॉक्टर जिनकी अगस्त में मृत्यु हुई थी, बिलासपुर की आशा कार्यकर्ता जिनकी सितंबर और दुर्ग के ड्रेसर जिनकी मृत्यु अगस्त में हुई थी। जिन दो मुआवजों को केंद्र द्वारा रद्द किया गया है। उनमें मई में दुर्ग जिले से भेजे गए लेब टेक्नीशियन की कोरोना मौत का मुआवजा रद्द किया गया है।
इनकी 17 मई को मृत्यु हुई थी, इसके पांच दिन बाद ही प्रकरण बनाकर केंद्र को भेजा गया था। वहीं रायगढ़ के ऑडियो मैट्रिक असिस्टेंट का प्रकरण भी जून में भेजा गया था। जिनकी 3 जून को मौत के दो दिन बाद प्रकरण बनाकर 5 जून को ऑनलाइन प्रकरण सबमिट किया गया।
सबसे ज्यादा दुर्ग के प्रकरण : अब तक केंद्र भेजे गए कोरोना मृत्यु के 22 प्रकरणों में सबसे ज्यादा पांच प्रकरण दुर्ग जिले के हैं। इसके बाद चार रायगढ़ और दो नांदगांव के हैं। भेजे गए प्रकरणों में आशा कार्यकर्ता और आया बाई के प्रकरण भी शामिल हैं। वे फ्रंट लाइन वर्कर के तौर पर ऑन ड्यूटी कोरोना संक्रमण से ग्रस्त हुई और उसकी वजह से उनकी मौत हो गई।
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