@पीयूष साहू•
बालोद। प्रतिदिन की भांति संत राम बालक दास जी द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके सीता रसोई संचालन वाट्सएप ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया गया, जिसका आनंद सभी भक्तों पिछले 5 माह से ले रहे हैं, और धार्मिक सामाजिक समसामयिक अनेक समस्याओं का समाधान भी इस ऑनलाइन सत्संग के द्वारा प्राप्त कर रहे हैं, यह अद्भुत सत्संग सभी को स्व विवेक चेतना हेतु प्रेरित कर रहा है एवं धार्मिक भारतीय परिवेश से भी परिचित करवा रहा है!
आज की सत्संग परिचर्चा में हेमंत साहू जी राजनांदगांव ने जिज्ञासा रखी की हनुमान चालीसा शिव जी के द्वारा रचित की गई है, इसमें कितनी सत्यता है बाबा जी ने बताया कि जनमानस जहां से भी कुछ ज्ञान प्राप्त हो जाता है उसे ग्रहण कर लेते हैं परंतु स्वविवेक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते, स्वयं ही सोचिए भगवान शिव यदि हनुमान चालीसा की रचना करते तो वह हिंदी ग्रामीण भाषा में कैसे रचते, गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना से पूर्व हनुमान चालीसा की रचना की थी, हनुमान चालीसा पूर्णता दोहा और चौपाई में रचित है जो कि गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसंधान है, भगवान शिव ने मानस की रचना अपने हृदय में की ना की दोहे छंद आदि में,
राजकुमार यादव जी कुनकुरी जशपुर ने जीवित्पुत्रिका व्रत की महत्ता कथा प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की इस व्रत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बाबाजी ने बताया कि यह सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पुत्र की दीर्घायु की मनोकामना हेतू करती हैं पूर्ण विधि-विधान से इस व्रत को किया जाता है पुत्र की कुश की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है तत्पश्चात कथा सुनकर यह व्रत किया जाता है परंतु यह बात पूरे भारत में हर स्थान पर नहीं किया जाता!
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी थान खम्हरिया ने जिज्ञासा रखी कि पिंडदान श्राद्ध आदि कर्म पुत्र के द्वारा ही क्यों किए जाते हैं, इस विषय को स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि पिंड दान या श्राद्ध उसी पुत्र द्वारा मान्य होता है जो कि गोत्रज होता है, विवाह में आंशिक रूप से भी कोई भी विधि-विधान में बाधा आ जाती है तो वह पुत्र पिंडदान के योग्य नहीं होता, आज के व्यवहारिक समय में पुत्रियां भी पिता का पिंडदान श्राद्ध कर सकती हैं!
सुंदरलाल जी ने श्री रामचरितमानस में शत्रुघ्न जी के चरित्र पर प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की, रामचरितमानस में शत्रुघ्न जी के चरित्र का वर्णन करते हुए बाबा जी ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने शत्रुघ्न जी को सुशील एवं शूरवीर कहां है, शूरवीर वे होते हैं जो कि अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं करते उन्हें अपनी वीरता पर अहंकार एवं दम्भ नहीं होता, वीरता का कार्य करने पर भी वे यही कहते हैं कि यह सब तो प्रभु की कृपा से ही हुआ है, शत्रुघ्न जी भी इसी चरित्र के धनी थे!
शत्रुघ्न जी लक्ष्मण जी के छोटे भाई थे तो उनमें उनके शूरवीर होने के गुण हुए, परंतु शत्रुघ्न जी में लक्ष्मण जी के क्रोध एवं उग्र भाव नहीं आए, बल्कि उन में भरत जी के सुशील गुण समाहित हुई, बाहर के शत्रुओं का तो राम भगवान लक्ष्मण भगवान ने नाश किया है, परंतु शत्रुघ्न जी ऐसे सुशील व्यक्तित्व के धनी हुए जिन्होंने अपने घर के शत्रुओं का नाश किया, इसीलिए उनके नाम के सुमिरन से ही व्यक्ति शत्रु भय से मुक्त हो जाता है इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने शत्रुहन जी को सुशील एवं शूरवीर कहा, जिनको भी प्रतिदिन के इस सत्संग में ऑनलाइन जुड़ना हो तो 6261988218 नम्बर पर अपना नाम पता लिखकर भेज सकते है!!!