श्री पाटेश्वर धाम तपोभूमि के संत राम बालक दास जी द्वारा संचालित ऑनलाइन सत्संग.. भक्तों का मिला स्नेह..

श्री पाटेश्वर धाम तपोभूमि के संत राम बालक दास जी द्वारा संचालित ऑनलाइन सत्संग.. भक्तों का मिला स्नेह..

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|ब्यूरो•बालोद|पियूस साहू|
बालोद:-  श्री पाटेश्वर धाम तपोभूमि के संत राम बालक दास जी द्वारा संचालित ऑनलाइन सत्संग केबल सत्संग नहीं बल्कि सभी भक्तों के स्नेह और प्रेम,   छोटे-छोटे बच्चों की किलकारी, माताओं के आशीर्वाद, भक्तों के अभिवादन से सुसज्जित परिचर्चा है जो कि प्रतिदिन सीता रसोई  संचालन ग्रुप में सुबह 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे संचालित होती है, इसमें भक्त अपनी जिज्ञासाओं को तो रखते ही हैं साथ में अपने  प्रेम भाव विचार को भी बाबा जी के साथ, समाहित करते हैं, आज यह ऑनलाइन सत्संग, इससे जुड़े भक्तों के दैनिक चर्या का अभिन्न अंग बन चुका है, जब तक  ऑनलाइन सत्संग में नहीं जुड़ते उनका मन ही नहीं लगता | इसी प्रकार बाबा जी की पाती  कार्यक्रम अपने नित्य नए रूप में प्रसारित किया जाता है, 16 अगस्त के बाबा जी की पाती एनुका सार्वा, डोंडीलोहारा पल्लवी दुर्ग, नन्ही पूर्वी साहू भेड़ी ने अपने कार्यक्रमों  एवम भावों की प्रस्तुति की, उनके द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण ने सभी का मन मोह लिया!!
                      आज की परिचर्चा में बाबा जी ने पाटेश्वर धाम में अपने बचपन के संस्मरण को सभी के समक्ष रखा, सन 1985  - 86 के समय था, घनघोर जंगल में गुरुदेव और हमारे अलावा कोई नहीं होता था, कभी-कभी गुरुदेव भी रामायण सत्संग में जब बाहर गांव चले जाते तो हम ही यहां पर अकेले होते थे, बाल स्वभाव से यहां की जीव जंतु ही हमारे सखा मित्र थे, यहां जलती हुई धुँनी की प्रचंड ज्वाला, उसके बगल में विराजमान श्री हनुमान जी, एक पीतल की बाल्टी नर्मदा कुंड के जल से भरी हुई, छोटे-छोटे दो बर्तन थे, उसके अलावा दिया जलाने को तेल से भरी एक बोतल होती थी और प्रसाद आदि रखने के लिए एक डिब्बा होती थी, धूनी  के पीछे मिट्टी के घड़े में कुछ दाल चावल या कंदमूल रखे हुए रहते थे इसके अलावा वहां कुछ   नहीं होता था, प्रतिदिन भोजन प्रसादी बन जाने के पश्चात धुनी माता को श्री ठाकुर जी को और हनुमानजी को भोग लगाने के पश्चात गुरुदेव को खिलाकर उनकी थाली में जो बचा था उसे मैं ग्रहण करता था और दोपहर के समय, गुरुदेव की सेवा के पश्चात बर्तनों को लेकर नीचे नाले में जाकर उन्हें साफ करता था वही समय मेरे खेल का भी होता था जब मैं दो- घंटे  जंगल के जीव जंतु बंदर आदि के साथ खेलता था उस समय हमें  यदा-कदा जंगल के राजा शेर के भी दर्शन होते थे गुरुदेव ने यह शिक्षा दी थी कि यह सभी जीव जंतु प्रकृति के प्राणी है, हम इन्हें कोई हानि ना पहुंचाएं तो यह भी हमें कोई हानि नहीं पहुंचाते यह सभी भगवान के दूत है माता रानी के सवारी सिंह ने भी हमें कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, परंतु बचपन में उनके दर्शन से भयभीत जरूर हुए थे!!!
                         रामफल जी ने जिज्ञासा रखी की हे गुरुदेव विभीषण रावण से कहते हैं       शो पर नारी लिलार गोसाईं     तजहूं चौथ की चंद की नाई         हे प्रभु इस पर प्रकाश डाले स्वामी, इन पंक्तियों के भाव के स्पष्ट करते हुए बाबाजी ने बताया कि चतुर्थी के चंद्रमा ने भगवान गणेश जी के रूप को देखकर उपहास किया था इसीलिए श्री गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया और वह कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए बाद में देवताओं ने उनका पूजन कर उन्हें प्रसन्न किया और चंद्रमा को श्राप मुक्त किया श्री गणेश जी  के श्राप के फल स्वरुप चंद्रमा पर दोष लगा, कि जिस दिन भगवान श्री गणेश का जन्म उत्सव मनाया जा रहा था उस दिन चंद्रमा ने उनके रूप को देखकर उनके रूप का उपहास किया, अतः इस दिन, जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा उसको दोष लगेगा, 
 इन पंक्तियों में छुपे भाव यह है कि यदि आपको अखंड राज्य चाहिए या अपने मानव जीवन का कल्याण करना है तो, ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम तत्पश्चात वानप्रस्थ आश्रम का पालन अवश्य करें, अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर ही नहीं आत्मा को भी बल मिलता है जो गृहस्थ आश्रम में पहुंचते हैं उन्हें अपने कर्तव्य का पूर्णता पालन करना चाहिए ओर 60 की उम्र में अपने वानप्रस्थ आश्रम अर्थात गौ माता की सेवा परिवार कल्याण के भाव में लग जाना चाहिए!!!
        पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखी कि भगवान से मांगे तो क्या मांगे, बाबा जी ने कहा कि भगवान से जब भी आप मांगे तो अपने सर पर उनका हाथ और जीवन में उनका साथ मांगे जब भगवान का साथ आपके साथ  होगा तो कभी भी कोई कठिनाई आपके समक्ष नहीं आएगी और डरने की कोई बात भी नहीं होगी!!!
         कविता साहू रायपुर ने प्रश्न किया कि देवियों को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती तब बाबा जी ने इस विषय पर प्रकाश डाला की देवी देवताओं को तुलसी चढ़ाने में कोई दोष नहीं होता है यदि भगवान भोले और गणेश जी पर भी तुलसी चढ़ा दी जाए तो कोई दोष नहीं है और तुलसी माता तो लक्ष्मी जी का स्वरुप है और पवित्र हैं देवियों पर भी मंजरी की माला अर्पित की जाती है!!!
      कविता  साहू जी ने प्रश्न किया कि,  मंत्र दीक्षा ली है तो उसी मंत्र द्वारा दूसरे गुरु से दीक्षा ली जा सकती है, बाबा जी ने स्पष्ट किया कि ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है यह उसी परिस्थिति में किया  जाता है जब आपने किसी  गृहस्थ गुरु  से दीक्षा ली हो और आपको किसी बैरागी गुरु से दीक्षा लेनी हो
         संतोष श्रीवास जी ने जिज्ञासा रखी की पूज्य गुरूदेव!!!
       हम जैसे गृहस्थियों को अनेक अवसरो पर अनैतिक कार्य न चाहते हुए भी करने पड़ते है।और ऐसी स्थिति में भगवान् को प्राप्त करने की बात सोचना हवा में दीवार खड़ा करने से भी मुझे कठिन प्रतीत होता है। तो क्या हम लोगों के साथ साथ प्राणी मात्र के प्रति सद्भाव रखकर अपने  कर्मो को उसे समर्पित करके क्या हमारी सद्गगति का कोई मार्ग खुल सकता है, कृपया मार्गदर्शन करें, बाबा जी ने इस विषय को स्पष्ट करते हुए बताया कि, गृहस्थ कभी अनैतिक कार्य कर ही नहीं सकता जो,  गृहस्थ नहीं है उन्हें अनैतिक कार्य ना कर सके इस हेतु उन्हें गृहस्थ जीवन से बांधा जाता है जिसने गृहस्थ में कदम नहीं रखा व अनैतिक कार्य से बचने के लिए गृहस्थ हो जाते हैं या गृहस्थ जो है वह अनैतिक कार्य करने वालों को दंड देने के अधिकारी होता है चाहे वह राजा हो रूप में हो प्रजा रूप में हो विद्वान रूप में हो अधिकारी रूप में हो या प्रशासनिक रूप में हो,गृहस्थ तो अनैतिक कार्य को रोकता है तो गृहस्थ में कुछ अनैतिक होने का सवाल ही नहीं होता!!
    इस प्रकार आज की सत्संग परिचर्चा जिज्ञासापूर्ण हुई!!!
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