CG :- दो वर्षों के बाद बलरामपुर के युवाओं ने मनाया धूमधाम से होली पर्व... युवाओं में काफी उत्साह...-

CG :- दो वर्षों के बाद बलरामपुर के युवाओं ने मनाया धूमधाम से होली पर्व... युवाओं में काफी उत्साह...-

PIYUSH SAHU (BALOD)
@बलरामपुर
विगत वर्ष कोरोना महामारी के वजह से कई त्योहारों पर प्रतिबंध लगा हुआ था जिससे नाना प्रकार के नियमों का पालन करना था जिस वजह से कोई भी त्यौहार रंग उत्साह के साथ नहीं मनाया गया लेकिन कोरोना पर जैसे ही नियंत्रण हासिल नजर आया लोगों ने अपने जोरों शोर उत्साह के साथ रंगोत्सव का त्योहार होली दिल भर के खेला गया व मनाया गया, जहां लोगों में काफी उत्साह देखने को मिला शहरों तथा गांव में इस त्यौहार को बढ़-चढ़कर लोगों ने भाग लिया। कहीं-कहीं रोड में डीजे के साथ झूमते लोगों का नजारा देखने को मिला तो वही कहीं-कहीं शहरों मे कई अंदाज मे घरों तथा फ्लैटों पर थिरकते लोगों का नजारा बहुत ही मनमोहक देखने को मिला। वहीं ग्रामीण अंचल में रीति रिवाज के अनुसार फाग गीतों को गाते नाचते हुए देखने को मिला। सड़क गलियों व घर घर में जा जाकर फाग गीत जिसे फागुन माह में होली का त्यौहार मनाया गया छत्तीसगढ़ में हर क्षेत्रों में तरह-तरह के व्यंजनों के साथ होली त्यौहार मनाया गया वहीं ग्रामीण अंचल में एक दूसरे के घर जाकर रंग गुलाल खेल कर तथा व्यंजनों का आनंद लेकर जश्न उत्साह के साथ इस वर्ष होली खेला गया ग्रामीण अंचलों में तो लोगों ने छोटे-छोटे गलियों में भी जा जा कर एक दूसरे से स्नेह मिलन किया गया वही परंपरा के अनुसार कथा इस तरह से है।
होली का रूपक कथा काया ही कयाधु है l इसी में प्रहलाद का जन्म होता है l परमात्मा के प्रति आह्लाद, (अटूट प्रेम) ही प्रहलाद है l हिरण्यगर्भा प्रकृति ही हिरण्याकुश हैl यही परमात्मा के प्रति प्रेम का कारण बनता है l यानी यही प्रहलाद का जनक है l यह प्रकृति का द्वंद जीव को अपनी ओर खींचता हैl जब जीव इस द्वंद से मुक्त होने का प्रयत्न करता है तो यह नाना प्रकार के कष्ट देना शुरू कर देता हैl साधक को जब नारद रूपी सतगुरु मिल जाते हैं तो साधक निडर हो जाता हैl मोह युक्त सांसारिक जो बंधन हैंl यही दुर्गम पहाड़ हैं l इन्हीं से हिरण्याकुश प्रहलाद को गिराता है l संसार सागर है इसी में बार-बार फेंकता है l परमात्मा से विमुख मन ही मतवाला हाथी है l इससे भक्त कुचला जाता है l अविद्या रूपी होली का ही त्रयतापो की ज्वाला मैं जीव को जलाती रहती है l लेकिन साधक सद्गुरु का आसरा लेकर 1 दिन इस ज्वाला को काट देता है l होली का स्वयं जल जाती है और साधक बच जाता है l प्रहलाद निश्चिंत होकर साधना में लग जाता है l परमात्मा के चिंतन में सतत लगी हुई स्थिर स्वास ही स्तंभ है l प्रेम से संचालित स्वर ईश्वर के स्वरूप में स्थिर हो जाता है l तब मन चींटी के समान सूक्ष्म हो जाता हैl त्रयतापो की ज्वाला का प्रभाव शांत हो जाता है l विषय अग्नि शांत हो जाती हैl ज्ञान अग्नि शेष बचती है और स्वर योग अग्नि से प्रज्वलित हो जाता है l उसी क्षण परमात्मा प्रकट हो जाता है l यही श्वास रूपी खंबे को फाड़ कर नरसिंह भगवान का प्रकट होना हैl इस प्रकार भक्त अभय होकर परमात्मा की गोद में खेलने लगता है और हिरण्याकुश मारा जाता है l अब नरसिंह कैसे हैं तो भाई जो नरों में सिंह हैं वही नरसिंह हैl यानी हमारे सद्गुरु भगवान ही नरसिंह हैंl नर रूप में हरि हैं l गुरुदेव की शरण में सदा रहो l सबकी एक दिन बन जाएगी l जैसे पहलाद की बन गई l यथार्थ गीता पढ़ने आत्म शान्ति व वास्तविक होली से अवतरित भवसागर रूपी ज्ञान की प्राप्ति होती है।
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