वाड्रफ़नगर में धूम-धाम से मनाई गई पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती...I

वाड्रफ़नगर में धूम-धाम से मनाई गई पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती...I

@बलरामपुर//कमल साहू।। 
भारत के जाने-माने विचारक, दार्शनिक और भारतीय जन संघर्ष के सह संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का 25 सितंबर यानी शनिवार को जन्म दिवस बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 105वीं जयंती पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह देखा गया। भारतीय जनता पार्टी संगठन के कई जगहों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय कि जयंती मनाई गई, साथ ही साथ बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत सरना में भी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिन मनाया गया।


इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष बलरामपुर छत्तीसगढ़ से शकुंतला पोर्ते ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के संस्मरण को याद करते हुए कहा कि दुनिया में सहजता और सफलता के पर्याय दीनदयाल उपाध्याय हैं। उनका जीवन के साथ संघर्ष तथा अभाव में अपनी अहमियतता को प्रदर्शित करने तथा कर्मठतापूर्ण जीवन में कार्यात्मक शैली और क्षमता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। इस अवसर पर पंडित दीनदयाल के छायाचित्र को नमन करते हुए भाजपा के समस्त पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं में हर्ष उल्लास का पल प्रफुल्लित हो रहा था। 

पदाधिकारियों का माने तो पंडित दीनदयाल जी जैसे हमारी पार्टी के पूर्वजों ने कितने संघर्षों के बाद पार्टी को खड़ा किया है यह आज की युवा पीढ़ी को जानना चाहिए पार्टी की कड़ी में दीनदयाल जी के जीवन पर आधारित किताबें रखी हुई हैं उनका अध्ययन कर कार्यकर्ता उसे अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं। इस अवसर पर महिला मोर्चा मंडल के बहुत से महिला कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी गण उपस्थित रहे, जिसमें महिला मोर्चा अध्यक्ष बलरामपुर शकुंतला पोर्ते ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन दर्शन कि महत्ता को बताया गया।

बीजेपी से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने प्रचार जनसंघ को दिए थे। हालांकि जनसंघ जनता पार्टी में शामिल हो गया था बाद में जब जनता पार्टी सरकार गिर गई तो 1980 में उन्हीं जन संगी कार्यकर्ताओं ने नई पार्टी भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी दरअसल आजादी के बाद भी संघ का राजनीतिक पार्टी बनने का कोई इरादा नहीं था लेकिन महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिंदू महासंघ अर्थात हिंदू महासभा छोड़ दी और संघ पर गांधी हत्या के आरोप में प्रतिबंध लगा कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न हुआ तो मुखर्जी ने संघ की मदद लेकर नई पार्टी जनसंघ शुरू की तब संघ प्रमुख गोलवलकर ने दीनदयाल उपाध्याय को संघ से मुखर्जी की मदद के लिए भेजा जिन्हें जन संघ का महासचिव बनाया गया संघ के अंदर भी महसूस किया जाने लगा था कि बिना राजनीति सहयोग के उनके कार्यकर्ताओं पर कोई भी हाथ डाल सकता है और राजनीति में उतरना भी नहीं था तो एक जरूरी लगा कि कोई ना कोई पार्टी तो ऐसी हो जहां उनके अपने स्वयं सेवक हूं प्रचारक हूं जो संघ के खिलाफ दुष्प्रचार या माहौल बनाने से सत्ता पक्ष को रोकें जनसंघ ऐसी पहली पार्टी थी लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी जब दो विधान, दो प्रधान, दो निशा का विरोध करने कश्मीर गए तो शेख अब्दुल्लाह की नजरबंदी में उनकी मौत हो गई अब सारी जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के ही सिर पर आ गई उन्होंने धीरे-धीरे अटल बिहारी वाजपेई को भी खड़ा किया लोकसभा चुनाव लड़ा या हार गए तो दोबारा 3 सीटों से लड़ आया लेकिन खुद संगठन करता ही रहे खुद कभी चुनाव के मैदान में नहीं उतरे मुखर्जी के बाद दूसरे कद्दावर नेता होने के बावजूद उन्होंने मुखर्जी की मौत के 14 साल तक जन संघ के अध्यक्ष का पद भी नहीं लिया वह दूसरों को अध्यक्ष बनाते रहे मूलचंद शर्मा प्रेमनाथ डोगरा आचार्य डीपी घोष पितांबर दास रामा राव वीरा बछराज व्यास और बलराज मधोक को अध्यक्ष बनाया तब जाकर दबाव में उन्होंने 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष का पद स्वीकार किया कालीकट के अधिवेशन में 1951 में 3 सीटें मिली थी जनसंघ को 1967 में 35 लोकसभा सीटों तक पहुंच गया था तो आप समझ सकते हैं कि अटल बिहारी जैसे नेता को खड़ा करने, बीजेपी की न्यू जनसंघ के तौर पर रखने सबको राजनीति के क्षेत्र में अप्रत्यक्ष रूप से मदद करने में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एक ऐसे पिलर के तौर पर काम किया जिनके बिना मुमकिन नहीं था इसलिए विपक्ष उनकी जयंती को ही निशान बना रहा है लेकिन तिरालिस दिन ही हुए थे उन्हें जन संघ का अध्यक्ष बने हुए और 10 फरवरी 1968 के दिन को स्यालदाह एक्सप्रेस में लखनऊ स्टेशन से शाम को पटना के लिए निकले और रात को 2:10 पर ट्रेन मुगलसराय पहुंची उसमें कार्यकर्ताओं को दीनदयाल नहीं मिले बाद में उनकी लाश वही पटरियों पर पड़ी पाई गई श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तरह जनसंघ ने अपना दूसरा बड़ा चेहरा रहस्यमई ढंग से खो दिया था दो हजार अट्ठारह में मुगल सराय स्टेशन का नाम दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रख दिया गया। 

वह पहले संघ प्रचारक जिन्हें राजनीति पार्टी में भेजा गया लेकिन वह राजनीति की दलदल से दूर रहकर सादगी से जीते रहे और अपने बाद के नेताओं के लिए आदर्श बन गए कि सत्ता की दलदल में रहते हुए भी कमल की तरह खिले रहें और कभी भी सत्ता का फायदा नहीं लिया, ना ही कभी किसी पद की लालसा रखी। हमेशा लाइन में खड़े आखरी व्यक्ति कि बात करते रहे, विश्व को अंत्योदय का संदेश देते रहे, बाद में उनके शिष्य अटल बिहारी बाजपेयी देश के प्रधानमंत्री के पद तक जा पहुंचे। 

इस जन्मदिन के अवसर पर अध्यक्ष भाजपा महिला मोर्चा बलरामपुर शकुंतला पोर्ते, मीडिया प्रभारी पार्वती देवी साहू जी, भाजपा महिला मोर्चा जनजाति उपाध्यक्ष ललिता सिंह, भाजपा महिला मोर्चा युवा अध्यक्ष अर्चना पांडे, बेचन राम कुशवाहा, शुभम कुशवाहा, सोबरन कुशवाहा, राजेंद्र कुशवाहा, राम गणेश कुशवाहा, शंकर जयसवाल, राजेश प्रजापति, श्रवण कनौजिया, दिनेश यादव, एलबी साहू आदि तमाम भाजपा महिला मोर्चा के मुख्य कार्यकर्ता, कार्यकर्तागण तथा सदस्यगण अन्य लोग उपस्थित थे।
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