Balrampur :- रघुनाथनगर ग्रामीण बैंक में अधिकारी-कर्मचारियों की दादागिरी व मनमौजी वर्षों से फल-फूल रहा...-

Balrampur :- रघुनाथनगर ग्रामीण बैंक में अधिकारी-कर्मचारियों की दादागिरी व मनमौजी वर्षों से फल-फूल रहा...-

PIYUSH SAHU (BALOD)

@ बलरामपुर// कमल चंद साहू।।
सुध लेने वाला कोई नहीं

गले में आई कार्ड भी नहीं लटकाते

मार्केट करने आये जैसा दिखते हैं अधिकारी-कर्मचारी 



रघुनाथनगर:- छत्तीसगढ़ राज्य में सरकार ने ग्रामीणों कि बैंकिंग कार्य कि सुविधा हेतु छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक की स्थापना की गई है। सरकार ने इन बैंकों की स्थापना इस मक़सद से की है कि गांवों में रहने वाले ग्रामीणों को बैंकिंग कार्य में सुविधा होगी। लेकिन इससे विपरीत हो रहा है।

विडम्बना कि बात तो यह है की यहां बैंकचार्या की भावना से बात तक नहीं करते हैं। आधिकांश समय अपने-आप में मशगूल रहते हैं। अधिकारी कर्मचारी सभी अपने अपने चहेतों और कमीशन खोरी के कामों में तल्लीन रहते हैं, ऐसा प्रतीत होता है। अधिकारी अपने चाहतों का फोटोकॉपी या अन्य बैंकिंग कार्य को पूर्ण करने में लगे रहते हैं। इससे आम आदमी का बैंकिंग काम प्रभावित होता है। शासन को चाहिए कि इन अधिकारी कर्मचारियों को मोबाइल में बात एक 2 मिनट ही बात करने का इजाजत होना चाहिए यहां तो अधिकारी सहित कैसियर व अन्य अधिकारी मोबाइल पर मशगूल देखा गया न जाने कहां का फोन आता है। इस तरह से बात करने से ग्रामीण अंचल से आए लोगों का बैंकिंग कार्य में विलंब होता है और बिना पैसा लिए ही निराश घर को लौटने को मजबूर होना पड़ता है।
क्योंकि सीधे-साधे गांव से आए हुए ग्रामीण लोगों का अधिकांशतः पासबुक बिना लेनदेन के ही यथावत पुनः वापस कर दिया जाता है और बैंकिंग कार्य का काम नहीं किया जाता है इससे स्पष्ट होता है कि यहां किसी न किसी कारण से सीधे-साधे लोगों को घुमाया जाता है। ग्रामवासी सीधे साधे रहते हैं उन लोगों को पता नहीं रहता है कि बैंक में क्या क्या लगता है इन सीधे-साधे का फायदा लेकर बैंक वाले अनावश्यक तौर पर कभी कभी कुछ भी मांग करने लगते हैं जैसे कि फिर से आधार कार्ड का फोटो कॉपी लाओ या फिर फोटो लाओ इस तरह का नाना प्रकार का मांग करने लगते हैं, मांग तो किया जाता है बहुत अच्छी की बात है लेकिन जब समय लास्ट हो जाता है जब बैंक बंद करने का टाइम रहता है उस समय क्यों बताया जाता है इसी चीज को बैंक वाले पहले बता देते तो दुकान से फोटोकॉपी या फिर फोटो या अन्य दस्तावेज जो आवश्यक होगा उसको बैंक में आए ग्रामीण पूरा कर लेते लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि इस बात को टालमटोल के तौर पर किया जाता है और जब समय निकल जाता है तब बताया जाता है ताकि यह ग्रामीण लोग इन सभी दस्तावेजों को पूरा न कर पाए और खाली हाथ घर को चला जाए और हम लोग भी दूध का धोया हुआ साबित हो जाएं की दस्तावेज पूरा नहीं करने की वजह से इसको पैसा नहीं दिया गया है या फिर बैंकिंग कार्य नहीं किया गया है ऐसे ऐसे लोग हमारे छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक में कार्य कर रहे हैं ऐसे लोगों को जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारियों को तथा शासन प्रशासन को ध्यान रखना चाहिए कि गांव में वास करने वाले सीधे-साधे ग्रामीणों को इस दौर पर परेशान न किया जाए इन लोगों को अपने दैनिक जीवन में बहुत सारे और भी काम रहते हैं ताकि बैंक का चक्कर लगा लगाकर अनावश्यक तौर से परेशान ना हो और इससे मानसिक और आर्थिक क्षति भी होती है। 

बैंकों में आई कार्ड जिसको परिचय पत्र कहा जाता है सख्त नियम है कि बैंक के अधिकारी कर्मचारी अपने परिचय पत्र को गले में लटका कर रखें जिससे की आम आदमी की समझ में आएगी यह व्यक्ति कौन सा आदमी है किस पद पर है इसे भलीभांति पहचान किया जा सके। लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है इन लोगों की दादागिरी और मनमौजी के वजह से यह अधिकारी कर्मचारी गले में परिचय पत्र नहीं पहनते हैं और पता भी नहीं चलता है कि यह व्यक्ति बैंक के किस जिम्मेदार पोस्ट पर है इसका पता भी नहीं चलता है।  

कुछ पत्रकार साथियों ने यह भी बताया कि इस ग्रामीण बैंक में कितने लोगों ने तो छह छह माह पूर्व से पहले चेक बुक के लिए मांग किए हैं, लेकिन आज तक चेक बुक का नहीं आ पाया है। 
इस ग्रामीण बैंक में इतनी दुर्दशा है कि जो व्यक्ति पैसा निकालना चाहता है वह कैसे जानेगा की हमारे पासबुक में कितना पैसा है जबकि पासबुक में प्रिंट ही नहीं किया जाता है अर्थात पासबुक में कितना लेनदेन हुआ है कितना बैलेंस बचा हुआ है इसकी जानकारी बैंक वाले बैंक में पासबुक में छापते नहीं है इससे ग्रामीणों को और भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जब बैंक में पासबुक छापा ही नहीं जाता तो कैसे ग्रामीण जानेगा कि हमारे खाते में कितना पैसा बचा है। बैंक में पासबुक छपाई नहीं होने से कितने ही ग्रामीण पैसा निकालने का ड्रावल फॉर्म भर के जमा कर देते हैं और शाम को जब बैंक टाइम समाप्ति होता है, इस समय यह बता दिया जाता है कि आपके खाते में पैसा कम है, इतना का ड्रावल फॉर्म क्यों भर दिए बोलकर डाटा भी जाता है और पासबुक को दे दिया जाता है ऐसे में ग्रामीण अंतिम समय में कम पैसे का ड्रावर फार्म भी नहीं भर पाता है और बिना पैसा का मजबूरन वापस आना पड़ता है। बैंक वालों से यह भी बोला जाता है कि कलम/पेन से ही पासबुक में लिख दीजिए ताकि फिर से जब कभी हम लोग आएंगे तो पता चलेगा कि हमारे खाते में कितना पैसा है तो भी अधिकारी पासबुक में पेन से भी अंकित नहीं करते हैं कि कितना पैसा बचा हुआ है। रघुनाथ नगर छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक में न जाने पिछले कई सालों से पासबुक प्रिंट नहीं किया जाता है जिसका खामियाजा गांव में निवास करने वाले सीधे साधे लोगों के ऊपर बीत रहा है जिसको सुनने वाला कोई नहीं है ऐसे में शासन प्रशासन जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को संज्ञान में लेते हुए बैंक की व्यवस्था को तत्काल सुधारने की पूरा पूरा प्रयास करना चाहिए। जिससे हमारा छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक में खुले हुए खातों की लोगों का समुचित ढंग से सुविधा का लाभ मिल सके।
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