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तेली
एक आदमी एक दिन सुबह - सुबह अपने गांव के तेली के घर तेल खरीदने गया था।
तब तक तेली तेल तौल रहा था, वह देखता रहा कि उसके पीछे ही तेली का कोल्हू चल रहा था ।
बैल की आंखों पर पट्टियां बंधी थीं और वह बैल कोल्हू को चला रहा था । कोई चलाने वाला नहीं था ।
उसने उस तेली को पृछाः कोई चला नहीं रहा है , फिर भी ये बैल चल रहा है , बात क्या है ?
उस तेली ने बड़े मतलब की बात कही ।
- देखते नहीं हैं , उसकी आंखें हमने बंद कर रखी हैं। जब आंख बंद होती है तो बैल को पता ही नहीं चलता कि कोई चला रहा है कि नहीं चला रहा है ।
आंख खुली हो तो बैल पता लगा लेगा कि कोई नहीं चला रहा है , तो वह खड़ा हो जाएगा ।
उस विचारक ने पूछाः लेकिन अगर वह खड़ा हो जाए , तो तुम्हें कैसे पता चलेगा ?....तुम तो पीठ किए बैठे हुए हो ।
उसने कहाः उसके गले में हमने घंटी बांध रखी है । चलता है घंटी बजती रहती है , जैसे ही घंटी रुकती , हम फिर उसे चला देते हैं ।
उसे कभी यह खयाल ही नहीं आ पाता कि बीच में चलाने वाला गैर - मौजूद था ।
उस विचारक ने कहाः लेकिन यह भी तो हो सकता है कि बैल खड़ा हो जाए और सिर हिलाता रहे , घंटी बजती रहे ।
उस तेली ने कहाः हाथ जोड़ते हैं आपके , कृपा करके यहां से चले जाइए , कहीं बैल ने आपकी बात सुन ली , बड़ी मुश्किल हो जाएगी, अगली बार कहीं और से तेल खरीदा करिए ।
बैल बिचारा सीधा काम कर रहा है , इस तरह की बात सुन ले सब गड़बड़ हो जाए।
बैल का मालिक नहीं चाहता है कि विचार बैल तक पहुंच जाए।
दुनिया में कोई मालिक नहीं चाहता है कि विचार मनुष्य तक पहुंच जाए ।
और मनुष्य को जोता हुआ है, बहुत से, बहुत से कोल्हुओं में उससे काम करवाया जा रहा है । और उसके गले में घंटियां बांध दी गई हैं जो बज रही हैं, और आदमी है कि आंख बंद किए चला जा रहा है ।
आंख किस बात से बंद हैं ?...आंख विश्वास से बंद हैं ।
बिलीफ , आदमी की आंख पर बिलीफ की पट्टियां हैं...विश्वास की पट्टियां हैं ।
तभी तो एक रंग की पट्टी एक आदमी को मुसलमान बना देती है , दूसरे को हिंदू , तीसरे को जैन , चौथे को ईसाई बना देती है ।
अन्यथा आदमी - आदमी में कोई और फर्क है सिवाय विश्वासों के ?
एक आदमी और दूसरे आदमी में कोई भेद है , कोई दीवार है , कोई खाई है उन दोनों के बीच ?
उनके प्रेम को रोकने वाली कोई दीवार है..??
सिर्फ विश्वास के अतिरिक्त और कोई दीवार नहीं है ।
मैं मुसलमान हो जाता हूं , आप हिंदृ हो जाते क्योंकि मुझे बचपन से दूसरे विश्वास का जहर पिलाया गया और आपको दूसरे विश्वास का जहर पिलाया गया ।
आपकी आंख पर दूसरे ढंग की पट्टियां बांधी गईं, कोई दूसरे कोल्हू में आपको जोता गया, मुझे किसी दूसरे कोल्हू में जोता गया ।
और चाहे हम किसी भी कोल्हू में जोते हों , एक बात तय है कि हमारी आंखें बंद कर दी गई हैं ।
हमारी आंख के खुलने के सारे द्वार बंद कर दिए गए हैं , हमारे भीतर खयाल भी पैदा न हो ।
और अगर कभी कोई खयाल दिलाने आ जाए तो कोल्हू का मालिक कहता है....आपके हाथ जोड़ते हैं , आप यहां से जाइए ।
आपकी बातें अगर बैल ने सुन ली तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी ।
इसलिए दुनिया में जब भी विचार को जन्म देने वाले लोग पैदा हुए तो हमने उनकी हत्या कर दी । हमने उनको सूली पर लटका दिया, या जहर पिला दिया ।
कबीरा खड़ा बाजार में
सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती
ना काहू से बैर
सावधान - आज बाजार में नफरत की खेती करने वाले बहुत हैं और उसके व्यापार करने वाले भी।
- संकलनकर्ता ओबीसी महासभा के संभागीय महासचिव, बीएसपी संयत्र कर्मी और कबीरपंथी हैं।