@बालोद//पीयूष साहू।।
मानस दर्शन जीवन अर्पण, तुलसी मानस प्रतिष्ठान छ ग प्रान्त, धमतरी जिला राज मानस संघ के संयुक्त तत्वावधान मे कोविड 19 वैश्विक महामारी के दुर्घस काल मे प्रान्त स्तरीय आल लाईन बेबीनार आदर्श व्याख्यान कौशल विषय पर आयोजित हुई। मुख्य अतिथि पं यज्ञेश मिश्रा जी उ प्र , अध्यक्षता श्री चैतराम साहू जी वरिष्ठ व्याख्याकार एवं मानस मंजरी के लेखक , विशेष अतिथी एवं मुख्य मार्गदर्शक स्वामी आत्मा राम कुम्भ जी , प्रशिक्षकगण प्रखर व्याख्याकार पुरुषोत्तम सिंह राजपूत "मानस मणि" ,श्री गोपाल वर्मा अन्तर्राष्ट्रीय क्रिया योगाचार्य एवं अध्यक्ष तुलसी मानस प्रतिष्ठान छ ग , श्री अर्जुन पुरी गोस्वामी जी अध्यक्ष राज मानस संघ धमतरी, श्री राम कृपालु वैष्णव जी बेमेतरा , श्री परमानंद यादव जी गरियाबंद, श्री लिलार सिन्हा जी चैनगंज गुण्डरदेही,श्री पीला राम शर्मा भागवताचार्य कुम्हारी ने प्रशिक्षक के रूप मे एवं होस्ट के रूप दीपक गुहा मरौद धमतरी ने सेवाएं दी। सर्व प्रथम भुमिका एवं मंगलाचरण विषय पर मार्ग दर्शन देते स्वामी जी ने कहा कि अति अल्प समय में ही हम दोनो का निर्वहन सुस्पष्ट उच्चारण से करे। भुमिका मे ही अपने व्यक्तव्य मे व्याख्याकार किन बिन्दुओ को रखेगे पता चल जाना चाहिये ।प्रखर वक्ता पुरुषोत्तम सिंह राजपूत ने शब्दार्थ, गुढार्थ, यथार्थ और विवेचना विषय मे चिर-परिचित ओजस्वी शैली मे यह कहा कि मिले विषय का सम्यक् सुस्पष्ट उच्चारण से पाठ कर उसका शब्दशः शब्दार्थ प्रस्तुत करे पश्चात लक्षार्थ फिर गुढार्थ फिर यथार्थ की यात्रा जन मानस को कराये। याद रखे कि पुरे भारत वर्ष मे छ ग ही ऐसा प्रदेश है जहा रामचरित मानस का आज व्यापक प्रचार प्रसार है।
हमारे छग में 19 हजार गाँव और प्रत्येक गाँव मे एक मानस मंडली तथा प्रत्येक lमानस मंडली मे 10सदस्य संख्या अर्थात 1लाख 90हजार लोग सीधे मानस से जुडे हुए है क्या इतनी बडी संख्या के होते हुए सनातन संस्कृति पर कोई खतरा आ सकता है?परन्तु दुर्भाग्य है कि हम आज वही खडे हैं जहा 6 सौ साल पुर्व युग दृष्टा संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास जी ने सनातन संस्कृति के दुर्घस काल को देखकर समन्वय ग्रंथ श्रीमद् रामचरित मानस की रचना की। उस समय हमारा हिन्दु समाज "शैव शाक्त गमादिनी हन्ये च बहवो मता: "की स्थिति मे जी रहा था ।आज भी यही स्थिति है "नाना पंथ जगत मे निज निज गुन गावे "और ऐसी स्थिति में हम व्याख्या कार साथियों की महती भुमिका है कि हम लोग गोस्वामी तुलसीदास जी के विचारों के संवाहक बन जन जन तक पहुचाये। श्री गोपाल वर्मा जी ने मानस मे अध्यात्म और अन्यान्य तुलसी साहित्य से पुष्टि पर जोर देते सुन्दर ढंग कहा कि" स्वभाव अध्यात्म उच्यते" परिभाषित किया। युग पुरोहित परमानंद यादव जी गरियाबंद ने मानस का मानव जीवन मे उपयोगिता विषय पर विचार रखा।
श्री राम कृपालु वैष्णव जी बेमेतरा ने मानस से चरित्र निर्माण विषय पर आचार संहिता की चर्चा करते कहा कि " जे गवाही यह चरित सम्हारे" पर केन्द्रित चर्चा रही। वरिष्ठ व्याख्याकार एवं तुलसी मानस प्रतिष्ठान जिला बालोद के अध्यक्ष श्री लिलार सिन्हा जी ने व्याख्याकार द्वारा कथा को कैसे रुचिकर और हितकर बनाया जाय विषय पर संबोधन देते कहा कि दृष्टांत का आवश्यकतानुसार परोसा जाय बोझिल नहो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए।
भागवताचार्य श्री पीला राम शर्मा जी ने व्याख्याकार को समय प्रबंधन और समसामयिक विवेचन के विषय से अवगत कराया।आपने समसामयिक विषयों को कितना और कैसे शामिल करे जिससे कथा का संतुलन विकृत न हो कथा की गरिमा और महिमा दोनो बनी रहे इसका ध्यान रखा जाय। पूज्य यज्ञेश मिश्रा जी उप्र द्वारा" उमा राम गुन गुढ "विषय पर तात्विक चिन्तन से भाव बिभोर कर इस आयोजन की सार्थकता से सबको अवगत कराया।
अध्यक्षीय उदबोधन मे मानस मंजरी के सर्जक श्री चैतराम साहू जी ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए सभी प्रशिक्षक को साधुवाद देते हुए आशीर्वाद प्रदान किया।इस कार्यक्रम का संचालन श्री त्रेता कुमार चन्द्राकर जी ने किया।