@ बालोद// सीएनबी लाइव न्यूज़।।
संत राम बालक दास के द्वारा प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में किया जा रहा है ।जिसमें हम अपने आसपास में छोटे-बड़े जीवन से जुड़े हुए हैं चाहे वह साधना से हो पूजा पाठ के नियमों से हो ग्रंथ से हो हमारी जीवनशैली से हो से संबंधित हर तरह की जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कर रहे हैं ।और जिसके समाधान से सभी विभिन्न जानकारियों से भी अवगत होते हैं।
आज की ऑनलाइन परिचर्चा में संतोष श्रीवास ने नवरात्र पर्व में नारियल क्यों नहीं फोडा जाता या खाया जाता एवं श्री सत्यनारायण जी को केवल आटे का ही प्रसाद क्यों भोग लगाया जाता है ।इस जिज्ञासा पर समाधान देने कि विनती की, बाबा जी ने बताया नारियल को की पवित्र माना गया है। इसीलिए उसे श्रीफल कहा जाता है ।नारियल का प्रसाद माता जी को नवमी के बाद ही भोग लगाया जाता है ।पूरे नवरात्र पर्व में जितने भी नारियल चढ़ते हैं उसे नवमी के बाद फोड़ कर घर घर में वितरित कर देना चाहिए ना ही उसे किसी को बेचना चाहिए या फिर व्यर्थ करना चाहिए इसीलिए पूरे 9 दिन बहुत अधिक नारियल चढ़ते हैं और विशेषकर अष्टमी के दिन, श्री हरि जी के प्रसाद के रूप में आटे का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है ।क्योंकि यह सबसे अधिक उपलब्ध साधन है जो कि हमारे घर के खाद्य पदार्थ में ही हमें मिल जाता है घर का घी,घर का गेहूं आटा और शक्कर से ही इसे बड़ी सरलता से हम घर में ही निर्मित कर सकते हैं और इससे हम बाहर की दूषित मिठाइयों से भी बच जाते हैं और यह लंबे समय तक सुरक्षित भी रह जाता है जिसके कारण यदि उस दिन आपका उपवास हो तो आप दूसरे दिन भी इसे ग्रहण कर सकते हैं।
रामफल ने रामचरितमानस पर जिज्ञासा रखते हुए महाराज जी से प्रश्न किया कि रामचरितमानस के पांच प्राण किसे कहा जाता है। इसे स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि किस तरह हमारा शरीर पांच छिति जल पावक गगन समीर से मिलकर बना है ।और यही पांच तत्व हमारे ज्ञानेंद्रिय को प्रभावित करती है, जो हमारे जीवन को निरंतरता और जीवंतता प्रदान करती है उसी तरह से रामचरितमानस के भी पांच प्राण है जिसमें प्रथम है माता सीता द्वितीय है लक्ष्मण जी तृतीय है भरत जी और चतुर्थ है विभीषण जी पंचम में सुग्रीव जी
रामायण में इन सब की रक्षा श्री हनुमान जी करते हैं, इन सभी के प्रसंग के कारण ही रामचरित मानस में प्राण समाहित है।
ओमकार वर्मा कोसमी,जिज्ञासा है की हमारी गौमाता मे तो सभी देवी देवताओ का वास है ही लेकिन और हम गौपालन करके गौ सेवा के साथ अपनी आय को कैसे बढा सकते है । इस विषय को स्पष्ट करते बाबा जी ने बताया कि इसके लिए तीन चरण सर्वप्रथम गौ माता पर पूर्णता विश्वास करना है और उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करना गौ माता इसका फल आपको कई गुना प्रदान करती है और वह स्वयं ही गुणवत्तापूर्ण होता है द्वितीय आप इनके दूध दही घी से डेरी फॉर्म द्वारा पैसा भी कमा सकते हैं इसके लिए उनका अच्छे से लालन-पालन आपको करना है उत्तम खाद्य पदार्थ की व्यवस्था सुनिश्चित करना और यह सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था बनानी है तब आपको यह दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की प्रदान करेगा और आज के कई लोगों की आजीविका का साधन है तीसरा इसके पंचगव्य प्रोडक्ट है जो कि इस के गोबर से प्राप्त किए जा सकते हैं जैसे गोबर की लकड़ी जैविक खाद दिया मूर्ति कंडे होम अगरबत्ती आदि बनाकर हम अपनी आजीविका को बढ़ा सकते हैं और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
भूषण साहू ने जीवन का सार गर्भित प्रश्न करते हुए बाबा जी से पूछा कि हम जब जन्म लेते हैं तो अपने साथ क्या-क्या लेकर आते हैं, बाबा जी ने इस पर अपने विचार रखते हुए बताया कि यू तो हम जब जन्म लेते हैं तो खाली हाथ ही आते हैं परंतु यह सिर्फ देखने के लिए होते हैं जब हम जन्म लेते हैं तो हमारे साथ हमारे हाथों की लकीरें जिसको हम अपने कर्म से खुद निर्मित कर सकते हैं अपने बाजुओं का बल जिस पर हमारे ऊपर अपने परिवार की अपने समाज की और देश की जिम्मेदारी होती है, दो सुंदर नयन दो सुंदर कान और संपूर्ण शरीर लेकर आते हैं, जिससे हम अपने कर्म एवं धर्म के द्वारा जिस रूप में चाहे मोड़ सकते हैं और अपने पिछले जन्म का प्रारब्ध भी लेकर आते हैं और अपनी संस्कृति और सभ्यता को भी लेकर आते हैं जो हमें समय-समय पर देखने को मिलता है तो यहां कभी भी नहीं कहा जा सकता कि हम कभी भी खाली हाथ जन्म लेते हैं।
इस प्रकार बाबा जी के मधुर भजन" वह कौन है जिसने हमको दी पहचान है...... " के साथ आज का सत्संग संपन्न हुआ।