Balod : रामबालक दास को महात्यागी क्यों कहा जाता है,वे अपने जीवन में क्या त्याग किए हैं... पढ़िए खबर में विस्तार से...-

Balod : रामबालक दास को महात्यागी क्यों कहा जाता है,वे अपने जीवन में क्या त्याग किए हैं... पढ़िए खबर में विस्तार से...-

PIYUSH SAHU (BALOD)
@ बालोद// सीएनबी लाइव न्यूज़।।
संत राम बालक दास  महात्यागी जी के द्वारा प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन हजारो भक्तों के मध्य सीता रसोई संचालन ग्रुप में आयोजित किया गया, जिसमें प्रतिदिन नित्य नई जिज्ञासाओं से हम अवगत होते हैं और उनका समाधान प्राप्त करके अपने ज्ञान एवं विवेक को आगे बढ़ाते हैं।
       आज ग्रुप में जिज्ञासा आई की आप को महात्यागी कहा जाता है, इस पदनाम, जिसके सम्बंध में विस्तृत जानकारी(जैसे आप का नाम महात्यागी क्यों पड़ा, आपने क्या क्या त्याग किया, जो जो त्यागें क्या वह त्याग की श्रेणी में आता है)इस विषय पर प्रकाश डाले गुरूदेव  इसे स्पष्ट करते हुए सन्त राम बालकदास महात्यागी जी ने बतया की सबसे पहले हम आपको कुछ संप्रदाय और अखाड़े के संबंध में बताते हैं प्रायः लोगों को संतों के नाम उपनाम को सुनकर जिज्ञासा होती है कि कोई लिखते हैं दास,कोई लिखते हैं गिरी,कोई लिखते हैं नंद,जैसे अवधेशानंद सुरेशानंद,कई कई संत भारती लिखते हैं कुछ साध्वी और अलग-अलग नाम है हमारे नाम में रामबालक दास महात्यागी या हमारे गुरुदेव का नाम राम जानकी दास महत्यागी तो लोग सोचते हैं क्या त्याग किया है इसलिए महात्यागी लिखते हैं देखिए त्याग करने से ही कोई सन्यासी विरक्त संत होता है ।लेकिन यह नाम जो महत्यागी नाम से हमें संबोधित किया जाता है यह एक बहुत दिनों से चली आ रही संबोधन की परंपरा है इसे जरा क्रम से समझते हैं।
13 अखाड़े भारत में होते हैं जैसा कि अभी कुंभ में आप सुन रहे हैं इनमें सैव'' साक्त" और वैश्णव तीन परंपराएं मुख्य है वैष्णव में भी निर्वाणी दिगंबर और निर्मोही तीन अखाड़े हैं हम दिगंबर अखाड़े से दीक्षित हुए हैं दिगंबर अखाड़े में 12 भाई  होते हैं साढे 12 भाई डांडिया 
लेकिन 13 भाई त्यागी अर्थात जब परिवार बढ़ता है तो एक समूह टूट कर अलग घर बसा लेता है और वह नाम या कुछ उपनाम अपना बना लेता है इसी तरह 13 भाई त्यागी हुए आज से करीब 100 साल पहले बाबा प्रयाग दास जी महात्यागी वह तेरा भाई त्यागी थे लेकिन उन्होंने कहा कि अब परिवार बड़ा हो गया है हमारा और हमारा शिष्य परिवार अलग हो जाएगा और इसको हम महात्यागी नाम देंगे वह भी 14 भाई महात्यागी तब से बाबा प्रयाग दास जी बाबा बलदेव दास जी बाबा नारायण दास जी बाबा रामदेव दास जी और दिल्ली से हमारे दादा गुरु रामकृष्ण दास महात्यागी मेरे गुरु देव अर्थात जामडी पाटेश्वर वाले महा त्यागी जी राम जानकी दास महत्यागी और उनके शिष्य होने के कारण हमारा नाम रामबालक दास महात्यागी यह है परंपरा का परिचय इसके आगे यदि हमने कोई त्याग किया है नहीं किया है त्यागी महात्यागी ऐसा कोई नाम लिखने का में कोई अधिकार है या नहीं यह तो देखने वाला समाज और पाटेश्वर धाम से कोई प्राप्त कर रहा हो तो वह प्राप्त करने वाला जिज्ञासु भक्त या शिष्य ही तय करेगा।
        आज के मीठा मोती में रिचा बहन ने सुंदर संदेश प्रेषित कीया की गुस्सा एवं अहंकार जीवन में क्रेडिट कार्ड की तरह है अभी उपयोग कीजिए बाद में भुगतान 
के भाव के स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि यदि हम किसी पर गुस्सा करते हैं तो वह भी अवश्य रूप से हम पर गुस्सा ही करेगा अतः गुस्सा के बदले आपको गुस्सा ही मिलेगा उसी तरह हम अहंकार करते हैं तो कुछ दिन बाद उसका परिणाम हमको अवश्य प्राप्त होता है अतः सत्य वचन, जिन्हें हमें अपने जीवन में अवश्य उतरना चाहिए।
        महा अष्टमी पर्व पर जिज्ञासा रखते हैं पाठक परदेसी जी ने प्रश्न किया कि मां शक्ति की 9 दिन के 9 शक्ति रूपा में महा अष्टमी पर्व की विशेषता क़्या है,  महा अष्टमी  पर्व की विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि अष्टमी के दिन शक्ति का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में होता है 8 दिन की तपस्या साधना कई लोगों की श्रद्धा भक्ति भावना जब तप अनुष्ठान हवन, से उपजी ऊष्मा इन सब के आभामंडल से संसार में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित  होती है 8 दिन में इनका व्यापक प्रभाव दिखने लगता है इसीलिए आठवें दिन पर महा अष्टमी की विशेष पूजा पाठ हवन का विधान है।
        भिलाई से मंगल जी के परिवार से पीपल के वृक्ष की पूजा के विधि विधान को वर्णन करने की विनती बाबाजी से की गई पीपल वृक्ष की पूजा के महत्व को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि गांव या घर के पास यदि बड़ा  पीपल वृक्ष हो तो आप प्रतिदिन इस पर दोनों समय दिया लगाए एवं उसकी परिक्रमा करें इससे आपको प्राणवायु तो प्राप्त होगी ही साथ ही सकारात्मक ऊर्जा भी प्राप्त होती है, ऐसी परिस्थिति ना बन पाए तो आप अपने घर में ही वृक्ष गमले में लगाकर उसकी पूजा-अर्चना कर सकते हैं और एक 2 साल में उसे किसी अच्छे स्थान पर लगा सकते हैं यदि ऐसा भी संभव ना हो तो आप उनकी सूखी लकड़ियों को मौली धागा से बांधकर पूजा स्थान पर रखकर प्रतिदिन पूजा करें।
 इस प्रकार मां की जस गीत से भरा हुआ सत्संग पूर्ण हुआ।
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