@पीयूष साहू//सीएनबी लाइव।।
श्रीमती कमला संभरक द्वारा रचित कविता
महिला दिवस नारी के कई रूप होते हैं कई स्वरूप होते हैं कई मिसाल हैं। नारी एक शक्ति है त्याग की मूरत है कर्तव्य की मशाल है।
अस्मिताओं के अरण्य में जब नारी शेरनी बनकर दहाड़ती है। तब ही रानी दुर्गावती ,रानी लक्ष्मी बाई ,जैसी वीरांगनायें रणचंडी बनकर दुश्मनों को ललकारती हैं। त्याग की मूरत है नारी पन्ना बाई जैसी मां अपने दिल के टुकड़े को देश हित के लिए कुर्बान कर जाती है । रजिया सुल्तान हो या रानी अहिल्याबाई होलकर देश की अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए राज्य की बागडोर भली-भांति संभालती है। पद्मिनी जैसी अनेकों रानियां स्वाभिमान के अस्तित्व की रक्षा हेतु हंसते-हंसते जोहर होना स्वीकार कर जाती है। दुर्गा वोहरा जैसी भाभी क्रांतिकारियों की सहयोगी बनकर पराक्रम और बहादुरी की पताका विश्व में फहराती है। कल्पना चावला जैसी शोध वैज्ञानिक नारी अंतरिक्ष में जाने वाली भारत की प्रथम महिला का सम्मान पाकर अमर सितारा बन जाती है। सावित्रीबाई फुले जैसी नारी जो रूढ़िवादी समाज की अवहेलनाओं को सहकर भी बालिकाओं को शिक्षित करने का साहस दिखलाती है। और देश की प्रथम महिला शिक्षिका का सम्मान पाती हैं।
नारी के इस अदम्य साहस पराक्रम त्याग शीलता और देशभक्ति की शौर्य गाथा को हम शत शत नमन करते हैं
आज महिला दिवस के शुभ अवसर पर उन्हें स्मरण कर उनका वंदन करते है।