
श्रीगुरुनानक देवजी का प्रकाश पर्व कार्तिक पूर्णिमा पर 30 नवंबर काे यानी आज है। प्रकाश पर्व पर जिले में उत्सव मनाया जाएगा। गुरुद्वाराें काे आकर्षक रूप से सजाया गया है। कार्तिक पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन के बाद प्रसाद वितरण के कार्यक्रम हाेंगे। जिले में तीन गुरुद्वारे हैं। इनमें से एक शहर, दूसरा रावां में व तीसरा नगरी में है।
रावा में व आसपास सिख समाज के लाेग नहीं हैं इसके बावजूद यहां बना गुरुद्वारा बाहर से आने वाले लाेगाें काे आश्चर्य चकित करता है। इसे 1981 में गांव लाेगाें की इच्छा पर तैयार कराया गया है। यहां दाे श्रीगुरुग्रंथसाहिब हैं। इनमें से एक वे श्रीगुुरुग्रंथसाहिब हैं जिन्हें आदिवासी संत द्वारा अमृतसर से लाया गया था। घर में आग लगने व सबकुछ जलने के बाद भी पीढ़ा पर रखे श्रीगुरुग्रंथसाहिब नहीं जले। इसके बाद यहां लाेगाें की इच्छा पर गुरुद्वारा बनाकर तैयार किया गया।
6 गांव के लाेग सुनते हैं भजन-कीर्तन
गुरुद्वारा में सेवा का काम बीबी राजेंदर काैर काेहली कर रहीं हैं। बीबी राजेंदर काैर काेहली ने बताया कि प्रकाश पर्व पर सुबह से भजन कीर्तन हाेगा। फिर प्रसाद दिया जाएगा। यहां हर राेज सुबह से भजन कीर्तन हाेता है। रावां सहित आसपास के छह गांव स्पीकर पर हाेने वाले भजन कीर्तन सुनकर जागते हैं। बड़ी संख्या में लाेग यहां आते जाते हैं। विदेशाें से भी संगत आ चुकी हैं। गुरुद्वारा की देखरेख धमतरी कमेटी करती है। यहां बसंत पंचमी पर मेला लगता है। हर पूर्णमासी काे अटूट लंगर हाेता है।
बटरेल गांव गंगरेल के डुबान में आया तो रावां में बस गए थे संत
बीबी राजेंदर काैर काेहली ने बताया कि गुरुद्वारे में दाे श्रीगुुरुग्रंथ साहिब हैं। इनमें से एक काे गंगरेल डूब क्षेत्र में आए गांव बटरेल के आदिवासी संत जगन्नाथ लेकर आए थे। वे तीर्थ करने संताें के साथ निकले थे। अमृतसर भी गए। संताें की संगत में रहे। 15 साल बाद उन्हें परिवार की याद आई ताे देखने आए। आते समय श्रीगुरुग्रंथसाहिब ले आए। जगन्नाथ का गांव बटरेल डूब में आया तो परिवार रावां में बस गया। यहां श्रीगुुरुग्रंथसाहिब की सेवा करते रहे। एक दिन फिर से तीर्थ पर जाने लगे ताे उन्होंंने परिवार के सदस्य तुलाराम काे श्रीगुुरुग्रथसाहिब की सेवा करते रहने कहा।
जगन्नाथ के जाने के बाद तुलाराम एक पीढ़े पर श्रीगुुरुग्रंथ साहिब काे रखकर सेवा करने लगे। एक दिन तुलाराम पत्नी सातिन बाई के साथ खेत गए थे। इसी दाैरान घर में आग लग गई। ग्रामीणों ने बच्चाें काे घर से बाहर निकाल लिया और तुलाराम काे सूचना दी। तुलाराम घर आए और अंदर जाकर श्रीगुरुग्रंथसाहिब काे देखा। घर का पूरा समान जलने के बाद भी श्रीगुरुग्रंथसाहिब पीढ़े पर रखे हुए थे। बस उनका उपरी कवर पर थोड़ी आंच आई थी।
दिन बीते। घर जलने के बावजूद ग्रंथ बचने की खबर गांव के लाेगाें के माध्यम से फैलती रही। रावां के पास ही सरदार जगदीश सिंह गिल का खेत है। यह खबर इनकाे मिली ताे ग्रंथ देखने रावां गए। यह जानकारी धमतरी के गुरुद्वारा कमेटी काे मिली ताे यहां के सदस्य भी गए।
श्रीगुरुग्रंथसाहिब काे धमतरी लाने का प्रयास किया। गांव वालाें ने मना कर दिया। साथ ही गांव में ही गुरुद्वारा बनाने की इच्छा जताई। इसके बाद संत जसवंत सिंह ने गुरुद्वारा की नींव रखी। सिख समाज व गांव के लाेगाें से उसी स्थान पर 1981 में गुुरुद्वारा बनवाया गया जहां तुलाराम रहता था व उसके मकान में आग लगी थी।
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