02 साल से दूसरे राज्यों से डेपुटेशन पर नहीं मांगे अफसर... सरकार को अपनों पर ज्यादा भराेसा...

02 साल से दूसरे राज्यों से डेपुटेशन पर नहीं मांगे अफसर... सरकार को अपनों पर ज्यादा भराेसा...

Avinash

@रायपुर//सीएनबी लाईव।। 

छत्तीसगढ़ में पिछले दाे साल से किसी दूसरे राज्य से अफसर डेपुटेशन पर नहीं मांगे गए। राज्य सरकार छत्तीसगढ़ कैडर के अफसरों पर भरोसा जताते हुए उनके भरोसे पूरा शासन चला रही है। वह भी ऐसी स्थिति में जब 15 आईएएस और इतने ही आईपीएस सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। मजेदार बात यह है कि दस जिलों में राज्य सेवा से प्रमोट हुए आईएएस और आईपीएस जिला संभाल रहे हैं।

मध्यप्रदेश से बंटवारे के बाद यह बात कही जाती रही कि अच्छे अफसरों को वहां रोक लिया गया और बाकी छत्तीसगढ़ को दे दिए गए। छत्तीसगढ़ के पहले सीएम बने अजीत जोगी भी कई बार यह बात कह चुके हैं। कई अफसर तो ऐसे हैं, जो दिल्ली से छत्तीसगढ़ नहीं लौटे तो कुछ ने बंटवारे में छत्तीसगढ़ मिलने के बाद मध्यप्रदेश जाने के लिए काफी कोशिश की। उस समय अफसरों की कमी थी, इसलिए दूसरे राज्यों से अफसर भी बुलाए जाते रहे हैं। नंदकुमार, पी. रमेश कुमार, एजेकेवी प्रसाद, जयतिलक और उनकी पत्नी और टी. श्रीनिवासुलु जैसे अफसर महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, केरल और त्रिपुरा से यहां आए थे। तमिलनाडु कैडर के संतोष मिश्रा और बिहार के मयंक वरवड़े अंतिम अफसर थे जो दूसरे राज्य से आए। संतोष मिश्रा के कारण उनकी पत्नी सोनल मिश्रा और हाल में भावना गुप्ता अपनी पसंद से छत्तीसगढ़ आई हैं। नई सरकार में किसी अफसर को डेपुटेशन पर नहीं बुलाया गया है। सेंट्रल डेपुटेशन की इच्छा रखने वाले अफसरों पर सरकार ने किसी तरह की रोक भी नहीं लगाई है।

इंडियन रेवेन्यू और टेलीकॉम सर्विस से भी छत्तीसगढ़ आए अफसर, कुछ अभी भी पदस्थ
छत्तीसगढ़ में अफसरों की कमी की वजह से आईआरएस और इंडियन टेलीकॉम सर्विस के अफसर भी डेपुटेशन पर आए और महत्वपूर्ण पदों पर रहे। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह आईआरएस थे, जिन्होंने बाद में भारतीय सेवा से इस्तीफा देकर यहां संविदा नौकरी की थी। रायपुर में ही वर्तमान में जीएसटी के एडिशनल कमिश्नर अजय पांडेय भी आईआरएस हैं, जो स्वास्थ्य सहित कई जिम्मेदारियों में रहे। फिलहाल अभिनव अग्रवाल आईआरएस अफसर राज्य में पदस्थ हैं। इसके अलावा टेलीकॉम सर्विस से वीके छबलानी और एपी त्रिपाठी अभी यहां पदस्थ हैं। छबलानी के पास रेलवे व इंडस्ट्री प्रोजेक्ट और त्रिपाठी आबकारी संभाल रहे हैं।

आईएएस-आईएफएस के बीच रहा विवाद
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के दौरान 103 आईएएस, 60 आईपीएस और 83 आईएफएस मिले थे। वर्तमान में 154 आईएएस, 133 आईपीएस और 153 आईएफएस हैं। पिछली सरकार में ब्यूरोक्रेसी में ही कई तरह के विवाद रहे हैं। आईएएस एसोसिएशन ने कई बार इस बात पर आपत्ति की थी कि उनके कैडर में आईएफएस बैठे हुए हैं। खेल और संस्कृति विभाग के आईपीएस की नियुक्ति को लेकर भी विवाद रहा। सरकार बदलने के बाद मंत्रालय से दर्जनभर आईएफएस की अरण्य भवन में वापसी हुई। इसके अलावा राज्य सेवा से प्रमोट होकर आईएएस या आईपीएस बने अफसरों को जिलों की जिम्मेदारी नहीं मिलने की नाराजगी रही, जिसे दूर कर अब ज्यादा को जिम्मेदारियां दी जा रही हैं।

पीएम मोदी भी अपना चुके हैं यह रणनीति
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी भी यह रणनीति अपना चुके हैं। उन्होंने दूसरे राज्य से डेपुटेशन पर अफसर बुलाने के बजाय गुजरात कैडर के या स्थानीय अफसरों को ही महत्व दिया। इसके पीछे यह तर्क था कि स्थानीय अफसर राज्य को ज्यादा बेहतर समझते हैं। खासकर असिस्टेंट कलेक्टर, एसडीएम के रूप में नौकरी शुरू करने वाले आईएएस या थानेदार, एसडीओपी के रूप में नौकरी शुरू करने वाले आईपीएस राज्य के लोगों व जरूरतों को बेहतर समझते हैं। कुछ अफसर यह तर्क भी देते हैं स्थानीय अफसर जिन्हें नौकरी का पूरा समय यहां बिताना है, उनके बजाय बाहरी अफसरों पर भ्रष्टाचार के मामले ज्यादा आते हैं, ऐसा इसलिए भी क्योंकि वे समय पूरा कर अपने मूल कैडर में लौट जाते हैं।



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