
पीलूराम साहू | राजधानी और प्रदेश में कोरोना से हुई मौतों ने वह सारे मिथक तोड़ दिए हैं, जो शुरुआती दौर में स्थापित थे और कहा जाता था कि शुगर, बीपी, हाईपरटेंशन और दमा रोगियों के साथ अधिक उम्र वालों के लिए खतरा ज्यादा है। अब प्रदेश में 400 से ज्यादा मौतें ऐसे लोगों की हुई हैं, जो स्वस्थ थे और सिर्फ कोरोना संक्रमण से कारण मौत से जंग हार गए। डाक्टरों का कहना है कि कोरोना वायरस से संक्रमित स्वस्थ लोगों को सही समय पर इलाज नहीं मिला तो यह फेफड़ों को इतना नुकसान पहुंचा सकता है कि जीवन बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। राजधानी-प्रदेश में कोरोना के इलाज में लगे डाक्टरों ने इस आंकड़े के आधार पर अपील की है कि कोरोना वायरस से सुरक्षा बहुत जरूरी है और जब तक वैक्सीन नहीं आती, मास्क ही वैक्सीन है। यही नहीं, अगर स्वस्थ लोगों को भी महसूस होता है कि उन्हें कोरोना के लक्षण हैं, जो जांच में बिलकुल देरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि जल्दी जांच से जान आसानी से बच सकती है।
राजधानी में 18 मार्च को पहला केस आया और 29 मई को पहली मौत हुई तो लगा था कि कोरोना उतना खतरनाक नहीं होगा, जितना पड़ोसी या दूसरे राज्यों में था। भास्कर ने कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टरों से जाना कि कोरोना से मरने वालों में सबसे ज्यादा किस बीमारी के लोग हैं। डायबिटीज व हाइपरटेंशन वाले मरीजों के लिए कोरोना काल साबित हो रहा है। इसके अलावा कैंसर, हार्ट, किडनी, लीवर व दूसरी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की भी मौत हुई है। हाइपरटेंशन व डायबिटीज की चर्चा करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इसे कॉमन बीमारी माना जाता है। अनियमित खानपान व जीवनशैली से यह दोनों बीमारी होती है। एक खतरनाक आंकड़ा यह भी है कि कोरोना संक्रमण से मरनेवालों में अधिकांश 45 से 50 की उम्र के थे। हालांकि ज्यादा रिस्क 60 या इससे ज्यादा की उम्र वालों को है, लेकिन युवाओं की भी जान गई है। जानकारों का दावा है कि 150 से ज्यादा युवा होंगे, जिनकी मौत कोरोना से हुई। मृतकों में 18 वर्ष से कम उम्र के तीन से चार किशोर भी हैं।
एक्सपर्ट व्यू - स्वस्थ लोगों में भी लक्षण दिखें तो तुरंत जांच करवाएं
"मृतकों में आधे मरीज ऐसे हैं, जिन्हें डायबिटीज व हाइपरटेंशन था। डायबिटीज, कैंसर, हार्ट या दूसरी बीमारी हो तो निश्चित रूप से कोरोना का रिस्क बढ़ जाता है। स्वस्थ लोगों को को लक्षण दिखने पर तुरंत जांच करनी चाहिए, क्योंकि ऐसे में इलाज आसान होता है। पॉजिटिव आने पर अस्पताल या होम आइसोलेशन में रहकर इलाज कराएं। इससे मौतों की संख्या कम की जा सकती है।"
-डॉ. आरके पंडा, चेस्ट एक्सपर्ट, नेहरू मेडिकल कॉलेज
देरी से इलाज बड़ी वजह
"जो लोग लक्षण के बावजूद जांच में देरी कर रहे हैं, उनके लिए खतरा ज्यादा है क्योंकि देरी से इलाज मौतों के मामले में बड़ा फैक्टर है। लोग जांच से घबराएं, बीमारी पता चल जाएगी तो आइसोलेशन अच्छा इलाज है।"
-डॉ. यूसुफ मेमन, सीनियर कैंसर सर्जन
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