कोरोना काल में धार्मिक संवाद का सबसे अच्छा माध्यम साबित हो रहा ऑनलाइन सत्संग कार्यक्रम...

कोरोना काल में धार्मिक संवाद का सबसे अच्छा माध्यम साबित हो रहा ऑनलाइन सत्संग कार्यक्रम...


|बालोद•पीयूष साहू|
आज पूरा देश विकट कोरोना संकट से घिरा हुआ है, जहां पर सभी को सामाजिक दूरी का पुर्णतः पालन करना है, और सभी जगह आना जाना भी अभी बाधित है, और सुंदर सत्संग के आयोजन के लाभ से जहां सभी वंचित है, इस असंभव कार्य को भी, पाटेश्वर धाम के संत बालयोगेश्वर राम बालक दास जी द्वारा किया जा रहा है, वे  अपने अथक परिश्रम द्वारा प्रतिदिन अपना बहुमूल्य समय देकर, लगभग 5 माह से, ऑनलाइन सत्संग का आयोजन वाट्सएप के सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे कर रहे है, जिसे भक्तगण लाभान्वित हो रहे हैं, प्रतिदिन सभी भक्तों अपनी जिज्ञासाओं को संत श्री के समक्ष रखते हैं एवं उनका समाधान संत जी के श्री मुख से प्राप्त करते हैं!
                      
आज की सत्संग परिचर्चा में पाठक परदेसी जी ने रामचरितमानस के दोहे "ता कहू  प्रभु कछु अगम नहीं... के भाव को स्पष्ट करने की विनती संत श्री से की, रामचरितमानस के इस दोहे के भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में इस दोहे मे  दो पक्ष को उल्लेखित किया है, एक है कथानक रूप दूसरा है भाव रूप, 

रामचरितमानस को  जब हम पढ़ते हैं, सुनते हैं तो उसे प्रथम कथानक रूप में ही देखना चाहिए कि यह घटना घटी है, ऐसा हुआ है क्योंकि उसका आनंद एवं रसापान आप तभी कर सकते हैं जब आप उसे स्वयं दृश्य रूप में अनुभव करें, भले ही आप रामायण को टीवी पर ही देख रहे हो परंतु यह अनुभव करें कि हम स्वयं वहां पर है और उस कथा को हम स्वयं देख रहे हैं, यदि आप कथा सुन रहे तो क्या वक्ता का दायित्व है जो आपको कथानक  को इस तरह प्रस्तुत करें कि वह आपको दृष्टिगत हो आपको ऐसा लगे कि आप उसे जी रहे हो या फिर उस समय आप वही उपस्थित हैं!
               
दूसरा पक्ष है कथा का भाव उस कथा के पीछे कौन सा संदेश छिपा है हर कथा में एक संदेश अवश्य होता है फिर तो यह रामचरितमानस तो महा कथानक है राम चरित्र मानस जैसी कथा तो ना कभी हुई है ना लिखी गई है कथा किसकी प्रभु श्रीराम की रचयिता कवि कुल शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी है जिसके तो उसका भाव कितना बड़ा होगा!
                   
इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट किया कि जिस पर प्रभु अनुकूल हो जाए उस प्राणी के लिए संसार में कुछ भी अगम नहीं है, यहां पर प्रभु श्री राम का रूप धर्म अनुसार है, अतः रामचरितमानस में जो प्रभु श्री राम अलौकिक हुए हैं वह पूर्णता धर्म निरूपण है, अर्थात जो व्यक्ति धर्मानुसार आचरण कर रहा है उसके लिए संसार में कुछ भी अगम नहीं है, जो व्यक्ति धर्म में सत्य में जीवन पालन करते हैं उनका तो जीवन राम कृपा मय होता ही है साथ ही वे दूसरों का भी कल्याण करते हैं!
                
वह व्यक्ति जो सदा सत्य का ही भाषण करते हैं उनकी वाणी कुछ भी बोले सत्य ही हो जाता है,आज के युग में भी ऐसे ऋषि महात्मा संत साध्वी है जो सत्य को ही धर्म मानते हैं सत्य उनका आचरण होता है सत्य ही उनका धर्म होता है आज भी उनका कहा सत्य होता है तभी तो सभी अपने कल्याण हेतु उनके दर्शन को जाते हैं!
                       
धर्म परायण हेतु पूरे विश्व में भगवान श्रीराम को सर्वोपरि माना गया है श्री राम ने धर्म की रक्षा हेतु सर्वस्व त्याग किया, धर्म परायणता के लिए प्रभु श्री राम की  पूरा विश्व की दुहाई देता है आज भी जिनके पूरे विश्व में उपासक एवं पथ  अनुयाई है राम कहे तो साक्षात धर्म उनका प्रत्येक कर्म आचरण पूर्णरूपेण धर्म है अतः "राम  ही धर्म है और धर्म ही राम है!
                  
परमात्मा ने यह संसार उन्हीं लोगों के लिए निर्मित किया जो धर्म की मीमांसा करें, धर्म पथ पर चले, धर्म के लिए अडिग रहे, धर्मानुसार आचरण करें, सत्य पथ का पालन करें, सत्यवादी हो ऐसे पराक्रमी पुरुष एवं स्त्री के लिए ही  संसार बना है दूराचारी  के लिए नहीं , पृथ्वी में जो भी ऋतु परिवर्तन होते हैं जो भी फूल पुष्प आदि खिलते हैं वह सब इन्हीं पराक्रमी व्यक्तियों के लिए हैं जो पापी दुराचारी है वह तो इसके पूण्य प्रताप में तर  रहे हैं!
                    
कई लोग कहते हैं कि यदि वे झूठ नहीं बोलेंगे तो उनका व्यापार नहीं चलेगा राजनीति नहीं चलेगी कामकाज कैसे चलेगा, परन्तु  सत्य से संसार टिका है तो आपका घर बार व्यापार कैसे नहीं चलेगा एक बार सत्य आचरण करके तो देखिए अंधकार से निकल कर तो देखिए तो आप स्वयं देखेंगे कि कैसे इस पशुतामय जीवन से आप एक आनंदमय जीवन में प्रवेश करेंगे और सत्य जीवन से भी परिचित होंगे धर्ममय  सत्यमय जीवन को अपनाएं तो शाश्वत जीवन का आनंद प्राप्त होगा!
                  
धर्म अनुसार जीवन से अभिप्राय है सर्व धर्म पालन, सर्व कर्म, कर्तव्य परायणता, आदर्श जीवन, सादा जीवन,  उच्च विचार, शाकाहार,  नशा व्यसन से मुक्ति सत्यवादी, मर्यादित जीवन जीना, सब को सुख पहुंचाना सबकी कल्याण की भावना रखना यह सारे गुण धर्म के हैं ऐसे गुणों को जो जीवन में धारण कर लेता है उसे संसार में कुछ भी अगम नहीं है यहां तक कि छोटे से छोटे पद कृति मान-सम्मान बल्कि स्वयं भगवान भी उसके लिए अगम नहीं है इसीलिए मनुष्य को चाहिए कि   कृत संकल्प करिए कि अपने जीवन में जो भी बुराई है उसका त्याग करेंगे खानपान नशा व्यसन नहीं करेंगे मांसाहार त्याग देंगे यह सब कुछ करके भी मन की कलुषता  को  यदि आपने नहीं त्यागा तो सब कुछ व्यर्थ है जलन भाव निंदा भाव त्यागे,  अच्छा सोचिए अच्छा बोलिए अच्छे कर्म करें!!!
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