|ब्यूरो•बालोद|से✍️पीयूष साहू|
जिस प्रकार प्रतिदिन भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार सत्संग भी आवश्यक है, भोजन हमें तन में उर्जा प्रदान करता है तो सत्संग हमें मन की उर्जा प्रदान करता है, आंतरिक शक्ति आत्मा को प्रबलता और बुद्धि को धार्मिक पुष्टि प्रदान करता है, अतः मन को प्रबल बनाने हेतु प्रतिदिन , पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन वाट्सएप ग्रुप में सुबह 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया जा रहा है. जिसमें देशव्यापी संत जुड़कर अपने अलौकिक ज्ञान का प्रकाश बिखेरते हैं, संत राम बालक दास जी के द्वारा विभिन्न भक्तों की जिज्ञासाओं का समाधान प्रतिदिन किया जाता है और सभी भक्त उनके अद्भुत ज्ञान से अति प्रसन्न एवं आश्चर्यचकित रह जाते हैं, आज ग्रुप में मैहर mp से शारदे माता के दरबार से महंत श्री अभिषेक पुरी गोस्वामी जी सीधे जुड़े, उन्होंने ग्रुप में माता की आरती एवं चल चित्रों का प्रसारण किया जिससे सभी भक्त आलोकित हुए एवं मैया का दर्शन प्राप्त किया!
महंत जी ने ग्रुप में मैहर की शारदा माता के विषय में विभिन्न जानकारियां हमें प्रदान की, महंत जी ने बताया कि वास्तव में मां शारदा का ब्रह्मांड में जन्म नहीं हुआ है, अजन्मी अविनाशी और अविरल है, भगवान शिव की संगिनी मां शक्ति ने जब अपने आराध्य का अपमान अपने ही पिता के मुख से सुना दो मां सती ने यज्ञ कुंड की अग्नि में प्रवेश लिया तब भगवान शिव ने राजा दक्ष को मृत्युदंड दिया परंतु समस्त देवताओं के आग्रह पर भगवान ने राजा दक्ष के धड़ पर बकरे का सिर लगाकर उन्हें पुनः जीवन दान प्रदान किया भगवान शिव माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लेकर पूरे ब्रह्मांड में शोक से विचरण करने लगे और संपूर्ण ओर विनाश छा गया इस विनाश को रोकने हेतु भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव शरीर को खंड खंड कर दिया और पूरे ब्रह्मांड में कुल 52 टुकड़े हुए और जहां जहां माता शक्ति के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ और जहां पर माता के आभूषण गिरे वहां पर सिद्ध पीठ हुए, मैहर भी एक सिद्ध पीठ धाम है, त्रिकूट पर्वत पर माता सती का हार गिरा था तब से इनका नाम मैया का हार पड़ा और यह मैहर कहलाने लगा, इस प्रकार मैहर मां शारदा सिद्ध पीठ धाम है, ज्ञात है कि सभी सिद्ध पीठ मां शक्ति पीठ ऊंची पर्वतों के प्राकृतिक छटा में स्थापित है, यहां पर त्रिकूट पर्वत पर स्थापित एक ऐसा अलौकिक धाम है जिसका निर्माण राजाओं द्वारा किया गया है यह मैहर का राज दरबार जूदेव जी के द्वारा निर्मित कराया गया यहां मैया इतनी सिद्ध रूप में है कि इनके समक्ष बैठकर आप, सच्चे हृदय से जो भी संकल्प करें मनोकामना करें वह अवश्य ही पूर्ण होती है सर्वप्रथम पूजा यहां पर नववी दसवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी और स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी!
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने इसी बीच जिज्ञासा रखी की, कहा जाता है कि आल्हा उदल यहां पर प्रथम पूजा करने प्रतिदिन आते हैं, तब महंत जी ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आल्हा ऊदल ने घोर तपस्या 12 वर्ष तक कर माता को प्रसन्न किया था और तब मां ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अमरत्व का वरदान दिया था और यह सत्य है कि सर्वप्रथम पूजा यहां पर आल्हा उदल द्वारा ही की जाती है यहां पर रात्रि में माता का सेज सिंगार करके उन्हें भोग आदि लगाकर हम पट बंद कर देते हैं ब्रह्म मुहूर्त में जब पट खोला जाता है तो यहां पर कुछ ना कुछ अस्त-व्यस्त अवश्य होता है या तो मां का मुकुट हिला रहेगा या तो भोग या फिर वहां पानी आदि कुछ ना कुछ परिवर्तन अवश्य होता हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि यहां पर कोई ना कोई माता के दर्शन हेतु अवश्य आया था और इस प्रकार के प्रमाण ही सिद्ध करते हैं कि आल्हा उदल यहां पर प्रतिदिन पूजा करने आते हैं!
इस प्रकार महंत जी ने मैहर की मां शारदे से संबंधित आदि अनेक जानकारियां ग्रुप में सभी को प्रदान की ऑनलाइन सत्संग से जुड़ने पर अति प्रसन्न भाव को व्यक्त किया इसके लिए उन्होंने संत राम बालक दास जी का धन्यवाद किया एवं सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं दी कि इस प्रकार के ऑनलाइन सत्संग का आयोजन में प्रतिदिन आनंद ले रहे हैं!
गणेश पक्ष में गणेश जी से संबंधित व आदि अनेक प्रश्नों का समाधान संत श्रीराम बालक दास जी द्वारा प्रतिदिन किया जा रहा है, आज भक्तों के अनुरोध पर बाबा जी ने गणेश जी के जन्म की कथा पर प्रकाश डाला, कैलाश पर्वत में माता पार्वती को यह अनुभव हुआ कि यहां पर जितने भी गणेश अभी शिवगन है और वे शिव के भक्त है इस बीच माता को ऐसे पुत्र या पुत्री की आवश्यकता अनुभव हुई कि जो पूर्णतः उनके आज्ञाकारी हो, तब उन्होंने अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा, "तुम मेरे पुत्र हो. तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना और किसी की नहीं. हे पुत्र! मैं स्नान के लिए भोगावती नदी जा रही हूं. कोई भी अंदर न आने पाए." कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर आए और पार्वती के भवन में जाने लगे. यह देखकर उस बालक ने उन्हें रोकना चाहा, बालक हठ देख कर भगवान शंकर क्रोधित हो गए. इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर भीतर चले गए. अपने पुत्र का यह हाल देखकर माता पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गई एवं उन्होंने शिव जी को आदेश दिया कि वह उनके पुत्र को पुनः जीवित करे तब भोलेनाथ ने, माता को समझाने का अत्यंत प्रयत्न किया कि यह बालक आपके शरीर के मैल से उत्पन्न हुआ था अतः यह मन्द बुद्धि था आप इसे त्याग कर दे परंतु माता क्रोध वश संपूर्ण सृष्टि के विनाश हेतु आतुर हो गई तभी भोलेनाथ ने सृष्टि की रक्षा हेतु बाल गजमुख के द्वारा श्री गणेश जी को पुनः जीवित किया और गणेश भगवान का जन्म हुआ, उपस्थित सभी देवी देवताओं ने उन्हें एक एक बर प्रदान किया और वे सर्व प्रथम पूज्य गणेश कहलाए!
बाबाजी ने बताया कि गणेश जी को बुद्धि के देवता कहा जाता है इसका अर्थ, चालाकी या चतुराई से नहीं है बुद्धि का अर्थ तो होता है दूसरों का कल्याण करना, भगवान गणेश जी को मोदक लड्डू फल और फलों में कैथ का फल अति प्रिय होता है, उन्हें सिंगार में सिंदूर भी चढ़ाया जाता है, सिंदूर चढ़ाने की कथा है कि जब भगवान गणेश को बाल गज का मुख लगाया गया तो उनकी माता ने उनका सिंदूर से अभिषेक किया था, माता पार्वती ने अपने बालक का सिंदूर से अभिषेक देखकर अति प्रसन्न हो गई और उन्होंने आशीर्वाद रूप में कहा कि जो भी भक्त गणेश जी का सिंदूर से अभिषेक करेंगे उनकी हर मनोकामना पूर्ण होगी तब से गणेश प्रतिमा पर सिंदूर से अभिषेक किया जाता है!
इसी प्रकार दूर्वा चढ़ाने का भी बहुत अधिक महत्व है दूर्वा को उनका अक्षत रूप माना जाता है!!!