मध्य प्रदेश में एक लाख कर्मचारियों की भर्ती की जा रही है। इसी कड़ी में वन विभाग में 1772 वनरक्षक, 37 स्टेनो टाइपिस्ट, 30 मानचित्रकार और 87 सहायक ग्रेड-तीन (लिपिकों) की भर्ती की जा रही है। शासन ने इन पदों को मंजूरी दे दी है। अब इस भर्ती के लिए डिमांड लेटर भेजे गए हैं। ये भर्ती प्रदेश के 37 जिलों में की जाएगी।
उधर, संविदा, स्थाईकर्मी और कम्प्यूटर आपरेटरों ने विरोध दर्ज करा दिया है। कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें पर्याप्त मौका दिए बगैर सीधी भर्ती से पद भरे जा रहे हैं। मध्य प्रदेश कर्मचारी मंच ने इसे लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने का फैसला किया है।
बता दें कि बैतूल जिले में सबसे अधिक 191, सागर में 150 और बालाघाट में 147 वनरक्षकों की भर्ती की जा रही है। वहीं अधिकतर जिलों में लिपिकों के भी पदों पर भर्ती होगी। इसे लेकर कर्मचारी इसलिए नाराज हैं क्योंकि 10 साल की सेवा के बाद भी उन्हें भर्ती में प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। प्रदेश के विभिन्न विभागों में स्थाईकर्मी, संविदा, अंशकालीन कर्मचारी और कम्प्यूटर आपरेटर कार्यरत हैं। इनमें से अधिकांश कर्मचारी 10 साल से अधिक से सेवाएं दे रहे हैं।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार के प्रकरण में 10 अप्रैल 2006 को फैसला दिया था कि सरकारी विभागों में कलेक्टर दर पर कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को 10 साल सेवा पूर्ण करने पर रिक्त पदों पर नियमित नियुक्ति दी जाए। ऐसे में कर्मचारियों का आरोप है कि राज्य सरकार न्यायालय के इस आदेश की अवहेलना कर रही है। विभागों में कार्यरत अनियमित कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ करते हुए रिक्त पदों पर सीधी भर्ती कर रही है। पद नहीं होंगे, तो उक्त संवर्ग के संविदा-स्थाई कर्मचारियों को नियमितीकरण का अधिकार नहीं मिलेगा।
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