@बालोद
प्रतिवर्ष अनुसार श्री पाटेश्वर धाम में माघी पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन चल रहा है , संत श्री राम बालक दास जी ने बताया कि 5 दिवसीय श्रीराम महायज्ञ एवं माघी पूर्णिमा महोत्सव के इस कार्यक्रम में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्तगण आकर पवित्र तीर्थ दर्शन मां कौशल्या मंदिर निर्माण का दर्शन एवं यज्ञ का आनंद लेकर श्री सीता रसोई में भोजन प्रसादी प्राप्त कर रहे हैं कल कलश यात्रा के साथ यज्ञ प्रारंभ हुआ और आज अग्नि प्राकटय के साथ आहुति भी प्रारंभ हुई है,, 15 एवं 16 फरवरी को विशेष हरि कीर्तन कथा आयोजन के साथ महायज्ञ संपन्न होगा और माघी पूर्णिमा मेला मनाया जाएगा।
इधर संत श्री राम बालक दास का ऑनलाइन सत्संग भी आज समय पर आयोजित हुआ और बाबा जी की वाणी के द्वारा उद्धृत होने वाला ज्ञान ही प्रसारित हुआ
जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए बाबा जी ने रामफल जी की जिज्ञासा" एक घड़ी आधी घड़ी पुनि आधो की आध । तुलसी चर्चा राम की कटे कोट अपराध " पर प्रकाश डालते हुए बताया कि एक क्षण को भी प्राप्त होने वाला सत्संग सारी जिंदगी बिना सत्संग रहने से लाख गुना अच्छा है, इसलिए अपने जीवन में सत्संग और हरि भजन के लिए अवश्य रूप से समय निकालना चाहिए।
आगे पुरुषोत्तम अग्रवाल की जिज्ञासा 'हिंदू धर्म के उत्थान में स्वामी दयानंद सरस्वती तथा उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज की भूमिका ' पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि कई लोग इस बात को भी विवाद बना कर बैठे हैं कि आर्य लोग बाहर से आए थे तो बताइए कि हमारे धर्म शास्त्रों में जो राजा महाराजाओं को और श्री राम और श्री कृष्ण भगवान को ही आर्यपुत्र कहकर संबोधित किया गया वह कैसे हो सकता है यदि आर्य बाहर से आए थे तो भारत का प्राचीन नाम आर्यव्रत कैसे था, दयानंद सरस्वती जी ने अपने समय में आर्य शब्द युक्त ना हो जाए इसीलिए अपने द्वारा संचालित की गई संस्था जो कि उस समय के पाखंड, कुप्रथा और दुराचार को दूर करने के लिए स्थापित किया गया था उसी का नाम आर्य समाज रखा, जिसके द्वारा आर्य सभ्यता आर्य संस्कृति और वैदिक सभ्यता को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया गए और उन्हीं का प्रयास है कि आज भी पूरे भारतवर्ष और विश्व में आर्य समाज द्वारा वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार किया जा रहा है, और उसका परचम लहरा रहा है
संगीता साहू के द्वारा पूछे गए रामचरितमानस के दोहे " तौ भगवानु सकल उर बासी।करिहि मोहि रधुवर कै दासी।।जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू।सो तेहि मिलइ न कछु सनदेहु।। " पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि प्रभु श्री राम जो अभी सुकुमार है वह धनुष को उठाने जाते हैं और माता सीता चिंतित हो जाती है कि इतने छोटे से सुकुमार इस धनुष को कैसे उठा पाएंगे जबकि माता-सीता स्वयं यह भूल जाती है कि भगवती माता सीता ने भी इस धनुष को एक ही हाथ उठा लिया था और वह श्री राम जी की चिंता करने लगती है और सभी देवी देवताओं से विनती करने लगती है विशेषकर श्री गणेश भगवान जी से क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पास हाथी जैसी सूंड होने के कारण अपार शक्ति है और इसीलिए वह कामना करती है कि सभी देवी देवता उनकी सहायता करें और इस चौपाई में वह कहती है कि सबके हृदय में निवास करने वाले भगवान मुझे रघुश्रेष्ठ राम की दासी अवश्य बनाएँगे। जिसका जिस पर सच्चा स्नेह होता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।
इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम।