प्रस्तुति पुनेश्वर लहरे संस्थापक “प्रयास ही सफलता”
>जीवन को हम जिस नज़र से देखते हैं, वही उसका मोल हो जाता है। आप इसे कीमती मानते हैं या अनमोल?
एक दिन एक आदमी गुरु के पास गया और उनसे पूछा, बताइए गुरुजी, जीवन का मूल्य क्या है?" गुरु ने उसे एक पत्थर दिया और कहा जा और इसका मूल्य पता करके आ, लेकिन ध्यान रखना पत्थर को बेचना नहीं है।" आदमी पत्थर को बाजार में एक संतरे वाले के पास लेकर गया और बोला, बता इसकी कीमत क्या है?
संतरे वाला चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '12 संतरे ले जा और इसे मुझे दे जा वह आदमी संतरे वाले से बोला, गुरु ने कहा है, इसे बेचना नहीं है और आगे वह एक सब्जी वाले के पास गया और उसे पत्थर दिखाया। सब्जी वाले ने पत्थर को देखा और कहा, एक बोरी आलू ले जा और इस पत्थर को मेरे पास छोड़ जाए उस आदमी ने कहा, इसे बेचना नहीं है, मेरे गुरु ने मना किया है।"
• आगे एक सुनार के पास गया और उसे पत्थर दिखाया सुनार उस चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '50 लाख में बेच दें।
उसने मना कर दिया तो सुनार बोला, 2 करोड़ में दे दे या बता इसकी कीमत जो मांगेगा, वह दूंगा तुझे..' उस आदमी ने सुनार से कहा, "मेरे गुरु ने इसे बेचने से मना किया है।"
आगे एक रत्नपारखी यानी जोहरी के पास वह गया और उसे पत्थर दिखाया। जोहरी ने जब उस बेशकीमती रत्न को देखा तो, पहले उसने एक लाल कपड़ा विछाया, फिर उस बेशकीमती रत्न की परिक्रमा लगाई, माथा टेका, फिर जौहरी बोला, 'कहां से लाया है ये रत्न? सारी कायनात, सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती। ये तो बेशकीमती है।" वह आदमी हेरान-परेशान होकर सीधे गुरु के पास गया और आपबीती बताई और बोला अब बताडए गुरुजी, जीवन का मूल्य क्या है?"
गुरु बोले, तूने पहले पत्थर को संतरे वाले को दिखाया, उसने इसकी कीमत 12 संतरे बताई। आगे सब्जी वाले के पास गया. उसने इसकी कीमत 1 वोटरी आलू बताई। आगे सुनार ने 2 करोड़ बताई और जोहरी ने इसे बेशकीमती बताया। ऐसा ही मानव जीवन है। इसे तू 12 संतरे में बेच दे या दोरी आलू में या 2 करोड़ में या फिर इसे बेशकीमती बना ले, ये तेरी सोच पर निर्भर है कि तू जीवन को किस नजर से देखता है।"