@ बालोद// पीयूष कुमार साहू।।
छत्तीसगढ़ के संत राम बालक दास के द्वारा उनके विभिन्न वाट्सएप ग्रुपों में लगातार एक वर्ष से प्रातः 10:00 बजे से एक घण्टे ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया रहा है
इसी श्रृंखला में आज ऑनलाइन परिचर्चा में किरण पांडे रायपुर ने प्रश्न किया कि
महाराज जी लहसुन प्याज क्यो खाने के लिए मना किया जाता हैं इसका तो आयुर्वेद में बहुत महत्व है।कृपया उत्तर बताने की कृपा करें, बाबा जी ने बताया कि आयुर्वेद में जहर को भी औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है लेकिन इसे कब और कितनी मात्रा में लेना है यह तय होता है पूर्व निर्धारित होता है, इस प्रकार आयुर्वेद में लहसुन प्याज को भी औषधि रूप में कब और कितना कहां खाना है यह तय है परंतु उसे हमें अपने भोजन के रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए, हमारे धर्म से निषेध क्यों किया गया है इसे जानते हैं एक समय भगवान श्री कृष्ण जब पारिजात का वृक्ष लेकर गोलोक चले गए तो पारिजात के वृक्ष को लाने के लिए इंद्रदेव ने वहां पर आक्रमण कर दिया कृष्ण जी और इंद्र के बीच युद्ध हुआ और इसमें गौ माता के कुछ अंश भाग पृथ्वी पर गिर पड़े जो कि प्याज और लहसुन के रूप में उत्पादित हुए इसीलिए यह भगवान को कभी भी भोग नहीं लगाया जाता और जो ठाकुर जी को नहीं भोग लगता है वह हम संत ओर भक्तगण भी कभी ग्रहण नहीं करते।
रामेश्वर वर्मा भीमपुरी ने जिज्ञासा रखी की व्यासपीठ पर भागवत की कथा कहने का ब्राम्हणों को अधिकार है सामान्य जाति वर्ग को क्यों नहीं इस पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे गुरुवर, संत श्री ने स्पष्ट किया कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि हे अर्जुन गुण कर्म और विभाग के अनुसार मैंने ही मनुष्य को चार वर्ण में विभाजित किया है,परन्तु ब्राह्मण आज सैलून खोल कर बैठा है तो नाई पोथी पढ़ रहा है जो की अनुचित है रामायण भागवत आप सभी पढ़ सकते हैं लेकिन उसका वाचन करना एक अलग अनुष्ठान है पूर्ण विधि-विधान और अनुष्ठान के साथ जब दान दक्षिणा लेकर पोथी रूप में वाचन किया जाता है तो यह अधिकार केवल और केवल ब्राह्मण को ही प्राप्त होता है क्योंकि हमें भी यह ज्ञात होना चाहिए कि जब हम किसी को दान दे रहे हैं तो वह उचित हाथों में जा रहा है कि नहीं क्योंकि दान का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही दिया गया है जो कि हमारे वेद पुराण में वर्णित है
शक्ति घाट श्रीमती केवरा देवी ने प्रश्न किया कि जीवन में गुरु का बहुत महत्व बोलते हैं, तो गुरु बनाना आवश्यक है? गुरु कैसा हो?कब बनाये ?बाबा जी ये मेरे मन बहुत दिनों चल रहा है ।, संत श्री ने बताया कि मंत्र की महिमा को हमें विदित कराने वाला ही गुरु है उसे कब देना है कैसे देना है शिष्य का परीक्षण करके ही बीज मंत्र दिया जाता है इसीलिए दीक्षा लेकर शिष्य बनना आवश्यक होता है जब भी ऐसे लगे कि हमें सच्चा गुरु प्राप्त हो चुका है तो अपने आप को पूर्ण रूप से उनको समर्पित कर देना चाहिए
रामफल ने जिज्ञासा रखी की
जो न तरै भवसागर नर समाज अस पाई। सो कृत निंदक मंद मती आत्महनन गति जाई।। इस दोहे पर प्रकाश डालने की कृपा हो प्रभु, बाबा जी ने बताया कि इतना सुंदर नर समाज इतना सुंदर सत्संग इतना सुंदर धरती इतनी सुंदर प्रकृति सुंदर सुंदर पशु पक्षी नदी तालाब झरने यज्ञ हवन धार्मिक स्थलों से सजी हुई भूमि रामकृष्ण की पावन मंदिर का दर्शन संतों की जन्म भूमि महावीर गौतम बुद्ध की अमृत संदेश नानक कबीर के संतवाणी यह सब हो कर भी जो नर भवसागर से तर ना सके उसका जीवन ही व्यर्थ है
शिवाली साहू जगदलपुर ने जिज्ञासा रखी की
एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अज्ञान ।।।।।पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान।।।।।
इस चोपाई पर प्रकाश डालने की कृपा करें गुरुदेव, इन पंक्तियों के भाव के स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि यह राम और हनुमान जी के मिलन के समय का प्रसंग है जब हनुमान जी राम जी को कहते हैं कि प्रभु मैं तो मोह ग्रसित अज्ञानी वानर हूं मैं आपको भूल सकता हूं पर प्रभु आप मुझे कैसे भूल गए और विप्र रूप को त्याग कर वह उनके चरणों में गिर पड़ते हैं हमें भी भगवान के लिए यही भाव रखना चाहिए कि हम भले ही परमात्मा को भूल जाए लेकिन परमात्मा हमें कैसे भूल सकते हैं यह "हनुमंत भाव" कहै जाते हैं
डुबोबत्ती यादव कुनकुरी ने रामचरितमानस पर जिज्ञासा रखी थी।
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जल जान ।। इस प्रसंग पर प्रकाश डालने की कृपा करें
इन पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि भवसागर से पार उतरने के लिए रघुनाथ जी का गुणगान करना चाहिए परंतु उससे भी ज्यादा पूण्य उनके गुणगान को सुनने वाले को मिलता हैं क्योंकि वे तो भवसागर से बिना नाव के ही तर जाते है आज बाबाजी ने सुंदर भजन के साथ ऑनलाइन सत्संग को संपन्न किया।
सत्संग में जुड़ने हेतु 9425510729 पर मैसेज करें।