balod-यज्ञ हवन आदि में परिक्रमा का महत्व इतना अधिक क्यों है, रामबालक दास........

balod-यज्ञ हवन आदि में परिक्रमा का महत्व इतना अधिक क्यों है, रामबालक दास........

PIYUSH SAHU (BALOD)
छत्तीसगढ़-बालोद
पीयूष साहू


पूरे भारतवर्ष में अपनी ख्याति प्राप्त कर चुका बालोद जिला के पाटेश्वर धाम के संतराम बालक दास जी का ऑनलाइन सत्संग का आयोजन अभी भी प्रतिदिन लोगों को लाभान्वित करवा रहा है अपने प्रवचनों से एवं उनकी समस्याओं का समाधान प्रेषित करके,
         आज उनके द्वारा संचालित होने वाले सीता रसोई संचालन ग्रुप में विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कर सभी के ज्ञान में वृद्धि हुई इसी में पाठक परदेसी जी ने अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत करते हुए संत जी से प्रश्न किया कि हवन यज्ञ आदि में गौमाता के घी का महत्व इतना अधिक क्यों है इसको स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि हवन यज्ञ में बहुत सी चीजों का महत्व है सर्वप्रथम तो यज्ञ करने वाला व्यक्ति देवीय गुणों से युक्त होना चाहिए , जिस प्रकार  पितरों को तर्पण केबल गोत्रज का व्यक्ति या उसका पुत्र ही प्रदान कर सकता है उसी के द्वारा किया गया हवन ही पितरों को प्राप्त होता है वैसे ही यज्ञ करता  देवव्रत ,देवी गुणों से युक्त,देवीय भोजन करने वाला,देवीय व्यवहार करने वाला कभी कटु ना बोलने वाला सज्जन व्यक्ति होना अनिवार्य है , दूसरी बात है कि गाय के घी के साथ साथ  हवन में जौ, काली तिल,साबुत चावल,अगर तगर सुगंधित जड़ी बूटियां, कपूर,कचरी,नगर मोथी, छबीला, चंदन चूरा कमलगट्टा,मखाने,शक्कर, गुड और मधुरस से तैयार किया गया शाकल्य बनाया जाता है उसमें गाय का घी उसी तरह प्राण दायक होता है जैसे हमारे शरीर में आत्मा यदि शाकल्य ही प्राण हीन होगा तो वह नौ ऊर्जाओ मैं कैसे प्राण फुकेगा
       सत्संग परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने यज्ञ में स्वाहा के महत्व को स्पष्ट करने की विनती की, इसपर  बाबा जी ने बताया कि जिस तरह से श्री कृष्ण के आह्वान की पूर्व राधा जी का आह्वान किया जाता है भगवान विष्णु के पूर्व लक्ष्मी जी का आह्वान किया जाता है शिव भगवान के आह्वान के पूर्व माता पार्वती का आह्वान किया जाता है श्री राम जी के नाम के पूर्व माता सीता का आह्वान किया जाता है उसी प्रकार यज्ञ देवता की पत्नी है स्वाहा उनका आह्वान किया जाता है और इसके एक और मुख्य कारण है हम स्वयं को अर्थात  स्व को यज्ञ के लिए पूर्णतया समर्पित कर रहे हैं यहस्वाहा शब्द का घोतक है।
        श्रीमती डुबोवती यादव जी ने, बाबा जी से जिज्ञासा की  
 यज्ञ हवन आदि में परिक्रमा का महत्व इतना अधिक क्यों है, संत श्री ने स्पष्ट किया कि परिक्रमा  आत्मसमर्पण का घोतक है, जब हम परिक्रमा करते हैं तब हम यज्ञ भगवान की बहुत अधिक समीप हो जाते हैं और उनकी पवित्रता और पूर्णता, सार्थकता हमें प्राप्त होती है इसीलिए आप कभी भी हवन के एक 51,या 108 परिक्रमा कर सकते हैं और पवित्रता को प्राप्त कर सकते हैं।
 इस प्रकार आज का ज्ञानपूर्ण सत्संग संपन्न हुआ
 जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम।
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