
छत्तीसगढ़ के सबसे ठंडे इलाके मैनपाट में सेब की खेती को लेकर पांच साल से चल रहे प्रयोग को कामयाब मान लिया गया है। कृषि वैज्ञानिक सहमत हैं कि मैनपाट में बड़े पैमाने पर सेब खेती हो सकती है। इस साल 200 एकड़ में सेब के पौधे लगाने की तैयारी कर ली गई है। अनुमान है कि दो साल बाद इन खेतों से सेब का उत्पादन शुरू होगा और प्रदेश के बाजार में इस सेब को मैनपाट सेब के नाम से जाना जाएगा। इंदिरा गांधी कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने करीब 5 साल पहले ठंडे प्रदेश में पाए जाने वाले फल जैसे सेव, नाशपाती, आडू (पीच) समेत अन्य की खेती प्रयोग के तौर पर शुरू की। 15 एकड़ में इसके पेड़ लगाए। मैनपाट की आवोहवा इन फलों के लिए अनुकूल रही। पिछले कुछ बरसों से लगातार इसमें फल आ रहे हैं। इसे देखते हुए कृषि विवि अब बड़े स्तर पर इसकी खेती शुरू करने की तैयारी कर रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अब मैनपाट व आसपास करीब 200 एकड़ में सेब, नाशपाती, आलूबुखारा, किन्नो समेत अन्य पेड़ लगाए जाएंगे। ठंडे प्रदेश में पाए जाने वाले विभिन्न फलों के लिए मैनपाट का मौसम अनुकूल है। सेब की ऐसी वैराइटी जिसमें ठंड की अधिक आवश्यकता नहीं होती। शेष|पेज 6
यह हिमाचल, पंजाब, पूर्वी उत्तरप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में लगाई जाती है। इन फलों के लिए संबंधित क्षेत्र की समुंद तल से ऊंचाई 1 हजार से 2500 से अधिक मीटर चाहिए। वहां का तापमान 40 से 45 दिनों तक 8 डिग्री से कम होना चाहिए। मैनपाट की आबोहवा व क्षेत्रीय स्थिति ऐसी ही है। इसलिए यहां सेव लो चील वैराइटी लगाई गई और प्रयोग सफल रहा। इसलिए अब बड़े स्तर पर सेव की यही वैराइटी लगाई जाएगी। इससे किसानों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
यहां सेव की लो-चिल वैरायटी लगेगी
विवि के अफसरों ने बताया कि यहां दो तरह की सेब की वैरायटी होगी। एक वैरायटी में ठंड की अधिक आवश्यकता होती है। यह वैराइटी समुद्र तल से 4000 हजार से अधिक मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगाई जाती है, जहां दो माह तक 4 डिग्री से कम तापमान रहे। इसे हाई चिल वैरायटी कहा जाता है। यह कश्मीर व हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में लगती है। दूसरी यानी लो-चिल वैरायटी के लिए कम ठंड की जरूरत होती है। यह समुद्र तल से हजार से ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर भी लग सकती है। मैनपाट में यही वैरायटी लगाई जा सकती है।
सकारात्मक नतीजे आए, खेती की तैयारी
"कश्मीर या हिमाचल जैसे ठंडे इलाकों में लगने वाले फलों को लेकर यहां हुए प्रयोग के सकारात्मक नतीजे आए हैं। इसीलिए सेब की बड़े स्तर पर खेती की तैयारी की जा रही है।"
-डॉ. एसके पाटिल, कुलपति इंगां कृविवि
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