@रायपुर (वेब न्यूज़)//सीएनबी लाईव।।
राजधानी में अनलाॅक के साथ ही डेवलपमेंट और निर्माण कार्यों में अचानक आई तेजी, पाइपलाइनें बिछाने के लिए एक हफ्ते से में 13 से ज्यादा सड़कों पर पाइपलाइनें डालने के लिए अंधाधुंध खुदाई और आधा दर्जन बड़े निर्माणाधीन प्रोजेक्ट पूरे शहर पर बेतहाशा धूल उगल रहे हैं। अनलाॅक से पहले शहर की हवा में पीएम 2.5 यानी धूल के बारीक कण औसतन 85 मिलीग्राम प्रति घनमीटर हो गए हैं। यह मात्रा लाॅकडाउन में 40-50 के बीच ही थी। विशेषज्ञों के मुताबिक यह धूल सीधे फेफड़ों पर अटैक कर रही है। कोरोना वायरस अब भी राजधानी में फेफड़े और श्वसनतंत्र के लिए खतरा बना हुआ है। उस पर हवा में लगभग दोगुनी हो चुकी धूल से खतरा और भी बढ़ सकती है।
भास्कर टीम ने शनिवार और रविवार को जयस्तंभ चौक, कलेक्टोरेट, कालीबाड़ी, भाठागांव, फाफाडीह, कचहरी चौक, अंबेडकर अस्पताल, पंडरी बस स्टैंड, तेलीबांधा मरीन ड्राइव, नालंदा परिसर, रेलवे स्टेशन आदि जगहों पर पाल्यूशन मापने वाले सेंसर सिस्टम की पड़ताल की है। वहां हवा में धूल शनिवार को 85 और रविवार को 75 के आसपास रही है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार रात का तापमान कुछ कम हो रहा है। इस वजह से सतह से 15 से 30 फीट तक हवा का घनत्व बढ़ेगा। इस वजह से धूल के कण ज्यादातर ऊंचाई तक नहीं जा पाएंगे। अगर धूल की मात्रा ऐसी ही रही तो नवंबर में खतरा और बढ़ सकता है।
इतनी धूल
- रेलवे स्टेशन - 87
- रावणभाठा - 81
- अशोका टावर - 76
- अनुपम गार्डन - 68
- जेल रोड - 60
50 मिलीग्राम/घनमीटर मात्रा संतोषजनक
भास्कर एक्सपर्ट - डॉ. केके साहू, चेस्ट-लंग्स सर्जन, एसीआई
धूल से भी सांस में तकलीफ, मास्क बेहद जरूरी
धूल के कण फेफड़े को ठोस कर देते हैं। यह न्यूमोकोनियोसिस भी उत्पन्न करते हैं। इससे फेफड़े के एल्बोलाई खून में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं घोल पाते। एल्बोलाई की ऑक्सीजन घोलने की क्षमता कम होने के कारण सांस फूलने लगती है। ठंड के दिनों में धूल के कण ऊपर जाने के बजाय नीचे रहते हैं। इससे एलर्जी भी पैदा होती है और अस्थमा बढ़ जाता है। कोरोना संक्रमण का संबंध भी सीधे सांस और फेफड़ों से है। अभी ज्यादा सावधानी की जरूरत है क्योंकि कोरोना तो है ही, अस्थमा और स्वाइन फ्लू का खतरा भी बढ़ सकता है। मास्क लगाने से धूल का सांस के जरिए सीधे फेफड़ों में जाना काफी हद तक रोक सकते हैं।
भास्कर नाॅलेज- देश में साढ़े 4 करोड़ टन धूल
धूल (डस्ट) हवा में ठोस पदार्थ या मैटर के बहुत ही छोटे-छोटे कण होते हैं। यह तब तक हवा के साथ उड़ती रहती है, जब तक सही ग्रेविटी न मिल जाए। ऐसे में वह सतह पर बैठने लगती है। हवा में कितनी मात्रा में धूल होती होगी, वैज्ञानिकों के पास अब तक इसका सही आंकड़ा नहीं है, लेकिन उनका अनुमान जरूर है कि पूरे देश में हर साल लगभग 4,50,00,000 टन धूल अलग-अलग चीजों पर जमती है। इसमें से 1, 40,00,000 टन धूल मानव गतिविधियों यानी निर्माण, खुदाई, कारखाने और वाहनों के के कारण उठती है। शेष प्राकृतिक यानी आंधी-तूफान वगैरह से आती है।
रोड की दो बार होगी सफाई, खुदाई के बाद तत्काल मलबा हटाना जरूरी
"राजधानी को धूल से मुक्ति दिलाई जाए, इसीलिए शहर की फोरलेन और सिक्सलेन सड़कों की सफाई की मशीनों से की जाएगी। इन्हीं सड़कों पर धूल ज्यादा है। यही नहीं, शहर की बाकी 330 कमी सड़कों की सफाई भी निगम के कर्मचारियों से दो बार करवाने की तैयारी है। इस दौरान जो धूल निकलेगी, उसे अलग इकट्ठा करेंगे, ताकि इसे फेंक सके। इन तरीकों से महीनेभर के भीतर धूल से राहत मिलने लगेगी।"
-एजाज ढेबर, महापौर रायपुर
"धूल की बड़ी वजह सड़कों की खुदाई और मिट्टी का सड़कों पर बिखरा रहना है। इसलिए जब भी सड़क की खुदाई हो, तो काम होने के बाद उसे तत्काल पुख्ता तरीके से बंद करवाना होगा। यही नहीं, कंस्ट्रक्शन मटेरियल और तोड़फोड़ से निकला मलबा मौके पर छूटा रहने से भी धूल की वजह बनता है। इसके लिए आरडीए भी अपनी साइट पर उपाय करेगा।"
-सुभाष धुप्पड़, चेयरमैन आरडीए