शहर में दर्जनों देवी मंदिर हैं। इनमें 5 प्रमुख हैं। सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि ये ऐतिहासिक हैं। इसलिए भी क्योंकि यहां मनोकामना लेकर आने वाले भक्तों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। इसी तेजी से यहां नवरात्रि पर जलने वाले जोतों की संख्या भी बढ़ी है। लेकिन कोरोना ने महज 6 माह में हर क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। अब मंदिर-देवालय भी इससे अछूते नहीं हैं। शहर के प्रमुख देवी मंदिरों में जलने वाले जोत की संख्या इस बार आधी ही रह गई है। इन मंदिरों में पिछले साल तक 30 हजार के करीब जोत जली थे, जबकि इस बार सिर्फ 15 हजार ही जलेंगी।
शहर के किस देवी मंदिर में इस बार कितने जोत
महामाया मंदिर, पुरानी बस्ती
2019- 11,000
इस बार- 5,300
बंजारी मंदिर, भनपुरी
2019- 10,000
इस बार- 6000
बंजारी मंदिर, रविवि कैंपस
2019- 3000
इस बार- 1000
काली मंदिर, आकाशवाणी चौक
2019- 4000
इस बार- 2000
दंतेश्वरी मंदिर, कुशालपुर
2019- 2000
इस बार- 1000
गाइडलाइन की छूट से राहत पर लेटलतीफी से नई चुनौती
गणेशोत्सव में नुकसान सह चुके छोटे कुम्हारों ने इस बार नवरात्रि से पहले कोई तैयारी नहीं की थी। नवरात्रि से महज 10 दिन पहले जोत स्थापना के लिए अनुमति तो मिल गई है, लेकिन कम समय में जोत कलश बनाना और सुखाना कुम्हारों के लिए नई चुनौती साबित हो गई है। हालांकि, 6 माह से काम ठप रहने के बाद अब जोत स्थापना की छूट कुम्हारों को राहत देने वाली ही है।
समय की कमी, संक्रमण का डर... इन वजहों से भी कम कलश
मनोकामना जोत कलश की संख्या में कमी के लिए कोई एक वजह जिम्मेदार नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं। पहले तो जोत स्थापना की गाइडलाइन आने में लेटलतीफी हुई। मंदिर व्यवस्थापकों की मानें तो तैयारी के लिए उन्हें सिर्फ 10 दिन का समय मिला है जो काफी नहीं। समय के अभाव में ज्यादातर तैयारियां अधूरी रह गईं। जैसे पूरे मंदिर का रंग रोगन और साज-सज्जा इतने कम समय में संभव नहीं। अभी मुख्य मंदिर और गर्भगृह की साफ-सफाई पर ही पूरा जोर है। दूसरी वजह यह भी है कि जितने ज्यादा जोत जलेंगे, उतने ज्यादा सेवादार भी लगेंगे। ऐसे में उनके बीच फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल हो जाएगा। इससे संक्रमण का खतरा बढ़ेगा। इन्हीं वजहों के चलते मंदिर ट्रस्टों ने हर साल के मुकाबले आधे ही जोत इस बार जलाने का फैसला लिया है।