|ब्यूरो•बालोद|✍️पीयूष साहू|
पाटेश्वर धाम के संत श्री बालयोगेश्वर राम बालक दास जी द्वारा संचालित ऑनलाइन सत्संग, एक ऐसा भागीरथी प्रयास और भक्तों के प्रेम स्नेह और सहयोग से निरंतर प्रवाहित होने वाली यह धारा है जिसे आज लगातार 135 दिन से भी अधिक होने को है, संत श्रीराम बालक दास जी द्वारा प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके सीता रसोई संचालन वाट्सएप ग्रुप में 6261988218 नंबर से प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर में 1:00 से 2:00 बजे तक किया जाता है, इसमें भक्त अपने जिज्ञासाओं को श्री संत जी के समक्ष रखते हैं एवं अपनी जिज्ञासाओं को शांत करते हैं!
आज ऑनलाइन सत्संग में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की जनेऊ संस्कार को उपनयन संस्कार किस अर्थ में कहा जाता है, बाबा जी ने इस विषय को स्पष्ट करते हुए बताया कि हमारे हिंदू धर्म में कई धार्मिक संस्कार किये जाते हैं, जिसमें अति प्रमुख शिखा जनेउ संस्कार है, हमारे हिंदू धर्म में सभी जाति पाति में जनेऊ संस्कार का प्रावधान है भले ही धारण विधि में भिन्नता है चाहे वह ब्राह्मण हो वैश्य क्षत्रिय शूद्र सब के अलग-अलग कार्यप्रणाली हेतु अलग अलग संकल्प के साथ अलग-अलग नियोजन से अलग-अलग गुरु परंपरा में यज्ञोपवित संस्कार किया जाता है ऐसा मानते हैं कि केवल ब्राह्मण ही इसे धारण करते हैं तो यह गलत है ब्राह्मण में जन्म लेने वाला बालक भी शुद्र की तरह ही होता है जब तक उसका जनेउ संस्कार नहीं होता वह ब्राह्मण नहीं हो पाता, स्त्रियों के जनेऊ संस्कार की परंपरा नहीं है परंतु गायत्री परिवार और आज के आधुनिक युग में स्त्रियों को भी अधिकार प्रदान किया है!
उपनयन संस्कार से हमारा तात्पर्य होता है कि हमारे भीतर केवल चरम चक्षु हैऔर अंतर चक्षु को उजागर करने हेतु हमें अपने उपनयन का संस्कार करना होगा यही यज्ञोपवित संस्कार है इसकी एक विधि है, इसे 4 से 7 वर्ष की उम्र में धारण किया जाता है परंतु कहीं-कहीं बालपन में ही यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता है, जब बालपन में यज्ञोपवित संस्कार नहीं किया जाता तो विवाह के मंडप में यज्ञोपवित संस्कार किया जाता है यह अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि यदि आप किसी कन्या का वरण कर रहे हैं अर्थात उसके लक्ष्मी रूप का वरण कर रहे हैं तो आप नारायण रूप में होते हैं और नर से नारायण बनने हेतु आपको जनेउ संस्कार कराना अत्यंत आवश्यक होता है, जनेऊ धारण करने वाले को कुछ प्रमुख नियमों का पालन करना आवश्यक होता है नहीं तो यज्ञो पवित संस्कार निरर्थक है, जो भी व्यक्ति यज्ञोपवित संस्कार करवाते हैं, उन्हें मांस मदीरा प्याज लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए, सूतक काल में, किसी रजस्वला स्त्री के संपर्क में आने पर, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की स्थिति में अपने जनेउ को बदल देना चाहिए, इसको धारण करने की और त्याग करने की विधि अलग-अलग होती है, शौच आदि क्रिया में अपने जनेउ को कान के ऊपर टांग दिया जाता है ऐसा करने पर शुक्र अर्थात आपका तेज प्रभावित नहीं होता और शुद्धता बनी रहती है!
बाबा जी ने आज सीता रसोई परिवार में एक विचार रखा, एवं सभी से उस विचार पर अपनी सहमति देने को कहा, 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक इस वर्ष पुरुषोत्तम मास का महा पर्व है, जो कि प्रत्येक 3 साल के बाद आता है, हमारे हिंदू धर्म में इस माह को बहुत अधिक पवित्र और बहुत उत्तम मास माना जाता है, पूजा पाठ का विशेष महत्व होता है इसमें किया गया पूजा कार्य एवं पवित्र कार्य का फल 4 गुना होता है, बाबा जी ने कहा कि जो लोग पूरे 12 महीना में एक भी दिन पूजा-पाठ के लिए नहीं निकाल पाते और हमेशा यही कहा करते हैं कि कहां समय मिल पाता है, उनके लिए ईश्वर का दिया गया यह अतिरिक्त माह है, ताकि वे सभी कर्मों को छोड़कर के एक माह ईश्वर में लीन हो जाएं!
पवित्र पुरुषोत्तम मास पर बाबा जी ने सभी से नंदी शाला में गौ माता के समक्ष प्रतिदिन 2:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक सत्संग का आयोजन करने का विचार रखा जिसे गौ माता के साथ-साथ वहां आने वाले भक्तगण भी सुन सकते हैं एवं ऑनलाइन रहने वाले भक्तगण यूट्यूब पर और व्हाट्सएप पर इसे ऑनलाइन देख भी सकते हैं, सभी इस विचार से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए और सभी ने इस विचार का स्वागत करते हुए अपनी सहमति प्रदान करें भक्तों ने कहा कि हमें अब पुरुषोत्तम मास का इंतजार है ताकि हम इस सत्संग का आनंद उठा सके!!!)