|ब्यूरो•बालोद|✍️पीयूष साहू|
सत्संग वह संजीवनी बूटी है, जो हमारे अध्यात्मिक तत्व को पुनर्जीवित करती है, एवं रोम रोम में परमानंद ऊर्जा का संचार करती है आत्मा को ईश्वर बिंदु की ओर ले जाती है, अतिसय सुख,और परमात्मा की प्राप्ति होती है परंतु इस कोरोना काल में जहां सामाजिक दूरी का सभी को पालन करना है, सत्संग का हो पाना संभव नहीं है, बालोद जिला के श्री सिद्ध पाटेश्वर धाम तीर्थ के संत श्री राम बालक दास जी द्वारा पिछले 4 महीनों से उनके अद्भुत प्रयासों द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके सिता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे प्रतिदिन किया जाता है जिसमें देशव्यापी संत भी जुड़ कर अपने ज्ञान की महिमा का प्रकाश बिखेरते हैं, भक्त अपनी जिज्ञासाओं को प्रतिदिन संत श्री के समक्ष रखते हैं और उनका उत्तर पाकर तृप्त होते हैं!
आज के सत्संग परिचर्चा में संत श्री ने बताया कि परिवार का क्या महत्व होता है, इसके लिए संत जी ने शिव परिवार का बहुत अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया, माता पार्वती ने गोबर के गणेश द्वारा गणेश जी में प्राण फुके थे उन्होंने उन्हें जन्म नहीं दिया था परंतु प्रेम ममता की कोई सीमा नहीं थी, उसी प्रकार माता यशोदा ने भी श्री कृष्ण को जन्म नहीं दिया था परंतु उनके प्रति उनका प्रेम कि कोई पराकाष्ठा नहीं है, उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने भी जिनके रोम-रोम में माता देवकी का खून बहता है, अपने संपूर्ण जीवन में उन्होंने माता यशोदा को ही मां कहा इस प्रेम को आप किस प्रकार परिभाषित करेंगे इसके लिए कोई शब्द नहीं है, इस प्रकार भारतवर्ष में रिश्ते खून से या जन्म से नहीं हृदय से बनते हैं परंतु इन रिश्तो में स्वार्थ नहीं होना चाहिए समर्पण का भाव अवश्य होना चाहिए, लेने से अधिक देने का भाव होना चाहिए!
आज के इस घोर कलयुग को देख कर ह्रदय विचलित हो जाता है जहां रिश्ते निभाने को भी उनका एहसान मानते हैं जिन माता पिता ने पुत्र को जन्म दिया आज वे उनके स्नेह को तरस रहे हैं धन्य हैं वे बेटियां जो अपने माता-पिता को तो स्नेह देखभाल दे ही रही है साथ ही अपने ससुराल में सास ससुर की भी सेवा कर रही हैं कुछ पुत्र ऐसे भी हैं जिनका झुकाव अपने ससुराल पक्ष से तो है परंतु माता-पिता से वे कोई सरोकार नहीं रखते!
बहुत से माता-पिता जो अपने बच्चों को पैसा जायदाद और पद देने में लगे हैं नौकरी देने में लगे हैं उन्हें ना तो संस्कार दे पा रहे हैं ना ही समय, ऐसे माता-पिता व संतानों को समझना चाहिए कि संसार में आए हैं तो पैसा पद प्रतिष्ठा ही सब कुछ नहीं अपने परिवार को समय दीजिए रिश्तो को समय दीजिए जो आपके शुभचिंतक है उन्हें समय दीजिए परिवार में यह चीजें ना हो तो परिवार परिवार नहीं व्यापार हो जाएगा एक दूसरे के प्रति समर्पित रहे हर कोई त्यागने के लिए और देने को तैयार रहें रामचरितमानस में श्री राम जी का परिवार इसका अनूठा उदाहरण है जहां एक दूसरे को देने के ही भाव रहे हैं रामजी ने भरत जी को तो भरत जी ने राम जी को दिया ही दिया है!
शिव परिवार, जिसमें माता पार्वती भोले बाबा श्री कार्तिकेय महाराज श्री गणेश महाराज और अशोका रानी के साथ-साथ शिवगन मोर शेर नंदी मूषक प्रेत गण भी विराजमान रहते हैं, ऐसे परिवार जहां एक दूसरे के स्वभावो से विपरीत पशु पक्षी भी प्रेम पूर्वक और एक दूसरे से समर्पित रहते हैं प्रेम का समर्पण का योग्य उदाहरण है जिससे हम एक आदर्श परिवार की प्रेरणा ले सकते हैं!
माता पार्वती जिसे मां की ममता का कभी सुख प्राप्ति नहीं हुआ, कुमार कार्तिकेय जिन को जन्म देने के उनके प्रबल इच्छा थी परंतु भोले की इच्छा अनुसार उन्हें कार्तिकेय का त्याग करना पड़ा कृतिकाओं को प्रदान करना पड़ा, और जब बाद में कार्तिकेय उन्हें प्राप्त हुए तो कार्तिकेय को सेनापति रूप में उन्हें देवताओं को देना पड़ा उसे अपने से दूर करना पड़ा श्री गणेश भगवान को जन कल्याण हेतु प्रथम पूज्य स्थापित कर उन्हें जन कल्याण हेतु प्रदान करना पड़ा और अशोक सुंदरी उनकी आज्ञा से तप करने चली गई उनका यह अद्भुत समर्पण और त्याग हमारी उन सभी माताओं के लिए प्रेरणा है जो सरहद पर अपने पुत्रों को टीका लगाकर स्वयं भेजती है और देश के लिए समर्पित कर देती हैं!
माता पार्वती जिन्होंने जनम जनम तक भोले भंडारी को जन्म जन्मांतर तक पति रूप में प्राप्त करने हेतु घोर तपस्या की और उन्हें वर रूप में प्राप्त भी किया, भोले की अपनी ही दुनिया है जब चाहे तब वे आंख खोलते हैं जब चाहे तब वे आंखें बंद कर लेते हैं लेकिन जगत कल्याणी प्रकृति माता पार्वती अपने कल्याण के हाथ हमेशा अपने भक्तों पर रखती है और शिव भोले को उनके कर्तव्य निर्वाह में कभी विघ्न नहीं आने देती, माता का यह चरित्र उन पत्नियों के लिए प्रेरणा है जो सरहद पर सब कुछ जानते हुए भी कि उनका पति शहीद भी हो सकता है तो भी उन्हें माता भारत की रक्षा हेतु स्वयं तिलक लगाकर भेजती हैं ऐसी माताओं को हमारा कोटी नमन है!
पुत्र कार्तिकेय जिन्होंने जनकल्याण की भावना से माता-पिता का साथ त्याग कर दूर गमन किया और देवताओं के सेनापति रूप में अपने को स्थापित किया और सभी कर्तव्य का निर्वाह किया, श्री गणेश भगवान जी जिन्होंने अपने रूप को ना देखते हुए उनके प्रथम पूज्य होने की सभी कर्तव्य का निर्वाह किया जन कल्याण हेतु दूसरे के दुख को दूर किया सभी का कल्याण किया कभी किसी कोई विघ्न ना हो ऐसा हमेशा ही ध्यान किया ऐसे प्रथम पूज्य गणेश भगवान हुए, माता अशोक सुंदरी कल्याण हेतु तप को गई, ऐसे पुत्र पुत्री संतान सभी के परिवार में होना चाहिए जो की धर्म में पूर्ण समर्पित हो और एक दूसरे के लिए प्रेम भाव रखते हो!
इस प्रकार एक आदर्श परिवार कैसा हो, एक माँ का क्या कर्तव्य होता हैं, एक पुत्र का और पुत्री का क्या कर्तव्य होना चाहिए, पिता का किस प्रकार समर्पण भाव होना चाहिए, पत्नी के क्या कर्तव्य होने चाहिए, यह शिक्षा हमें शिव परिवार से मिलती है!
गीता साहू जी ने उर्मिला मैया के विषय में प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की, बाबा जी ने माता उर्मिला के विषय में बताते हुए कहा कि उर्मिला जी बहुत शांत और तपस्वी है आप वर्णन के नहीं वंदना की पात्र हैं माता उर्मिला उस निव का पत्थर है जिनके द्वारा रामराज्य हो पाया जिनके कारण राम लक्ष्मण सीता लोक कल्याण हेतु जा पाए, माता सीता ने अपने सास-ससुर की सेवा हेतु माता उर्मिला को देख अपने कर्तव्य से निश्चिंत होकर पतिव्रत धर्म का पालन कर पाए ऐसे माता उर्मिला का चरित्र है जिनको कोटी कोटी नमन है!!!