|ब्यूरो•बालोद|से✍️पीयूष साहू|
कोरोना के काल में ऑनलाइन सत्संग एक अमृत तुल्य ऐसी घुट्टी है, जिसके पीने से मानसिक तनाव तो दूर होता ही है, इससे शारीरिक ऊर्जा, अनन्त ज्ञान का संचार होता है,वो भी बिना किसी मूल्य के अतः सभी भक्त इस घुट्टी को निरन्तर पीते रहें, अनगिनत फायदे हो जायेंगे, पाटेश्वर धाम संत राम बालक दास जी द्वारा ऑनलाइन सत्संग प्रतिदिन सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे संचालित किया जाता है, जिसमें सभी भक्त जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं को सन्त राम बालक दास जी के ज्ञान से तृप्त करते हैं, आपकी यूट्यूब चैनल पर प्रतिदिन संध्या 4:00 बजे बाबा जी की पाती कार्यक्रम का अद्भुत प्रसारण किया जाता है, 17अगस्त का बाबा जी की पाती मे जो आपने संदेश दिया की हम सभी हिन्दुस्तानी भाइयों को राष्ट्र प्रेम के लिए जागरूक किया। हमे हमारी भाषा, पोषाक और भोजन कैसा हो स्पष्ट शब्दों में समझाया। हमारी गौमाता की रक्षा कर पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से अपील किया जिसका सब गौ भक्तों ने समर्थन किया
आज के ऑनलाइन परिचर्चा में पोला पर्व की बड़ी धूम रही, सभी ने संत श्री राम बालक दास जी को पोला पर्व की हार्दिक बधाई दी एवं बाबा जी ने भी सभी भक्तों को पर्व की बधाइयां प्रेषित की, इस पर्व के उपलक्ष में पाठक परदेसी जी ने पोला पर्व पर विशेष रूप से बैलों की पूजा पर प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की, बाबा जी ने बताया कि पोला पर्व को कुशोत्पाटनी अमावस्या भी कहा जाता है इस दिन कुश को जमीन में गाड़ कर उस में दही डालकर उसे नष्ट करने की परंपरा है महाभारत काल में माता कुंती ने भी इस परंपरा का निर्वाह किया था अपने पुत्रों की रक्षा हेतु, कुषेन्द्र नामक ऋषि ने भी इस अमावस्या पर भगवान शिव की विशेष पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया आज के दिन भगवान नंदी जो नंदेश्वर कहलाते हैं उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर शिव जी का साथ सानिध्य मांगा और आज ही के दिन भगवान शिव ने उन्हें नंदी रूप में अपनी सवारी रूप में स्वीकार किया था इसीलिए आज के दिन नंदी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, भगवान श्री कृष्ण ने आज के दिन कंस का वध किया था और वृंदावन में अपने गांव वालों के साथ गायों बेलों के साथ पूरी साज सजावट के साथ हर्ष पूर्वक इस दिन को मनाया था!
इस दिन की विशेषता इसलिए भी है क्योंकि आषाढ़ मास से प्रारंभ करते हुए किसान खेती में पूर्णता बैलों का उपयोग करते हैं, चाहे जोताई हो या खेतों में बुवाई हो बीज ढोने का कार्य हो या खेतों में ब्यासी का कार्य हो, अब पोला पर्व पर उनके सम्मान का दिन होता है उन्हें सजा कर उनकी पूजा की जाती है उन्हें सम्मान दिया जाता है!
आज के दिन किसान अपने खेतों में नहीं जाते क्योंकि कहा जाता है कि आज के दिन फसलों में दूध भरता है, उसे हम किसी प्रकार का नुकसान ना पहुंचाएं इसीलिए किसान गण एवं अन्य गण कोई भी खेत में नहीं जाते और यह धरती माता के सम्मान में पोला पर्व मनाया जाता है!
पोला पर्व छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक है लगभग सभी घरों में ठेठरी और खुरमी बनाई जाती है, इस कोरोना काल में जब लगभग सभी बच्चों को घर के पकवान खाने की आदत पड़ चुकी है, जो कि सभी बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा है, इसीलिए बाबा जी ने सभी से विनती की कि घरों में ही त्योहारों पर बनाए गए व्यंजनों का आनंद अपने बच्चों को लेने दे, ता कि अभी लॉकडाउन खुल जाने से जो बाजार के उत्पाद है पैक आइटम है वह बच्चों तक ना पहुंच पाए बच्चे घर में ही बने पकवानों का आनंद ले और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें!
आज के मंगलवार के पावन दिन पर पाठक परदेसी जी ने हनुमान भगवान के संकट मोचन रूप की व्याख्या करने की विनती बाबा जी से की, बाबा जी ने बताया कि जब भगवान राम जो सभी के संकट हरते हैं उन पर संकट आया तो, तब अहिरावण का वध करके श्री हनुमान भगवान ने ही राम भगवान लक्ष्मण जी को अपने कंधे पर बैठाकर लाया था और यहीं से वसिंष्ट रामायण में श्री हनुमान जी का नाम संकट मोचन हुआ, इस प्रकार हनुमान भगवान जी ने माता सीता को मुद्रिका देकर, लक्ष्मण जी के संजीवनी बूटी लाकर प्राण बचाकर, भरत भगवान को श्री राम की सुध दिला कर, सुग्रीव जी को राज्यपाट और भगवान श्री राम का साथ ही दिला कर, बालि को मोक्ष प्रदान करवा कर, विभीषण को भगवान की शरणागति दिलवाकर सभी के संकट हरे!
सीता रसोई परिवार जो पाटेश्वर धाम के ऑनलाइन सत्संग का मूल आधार है पाटेश्वर धाम ही नहीं अन्य जगह जहां भी भोजन आवश्यकता है वहां पर भोजन प्रसादी की व्यवस्था करवाती है, यहां सभी अपने जन्म दिवस शादी की वर्षगांठ एवं पूर्ण अतिथियों में मात्र ₹700 की सेवा देकर पुण्य प्रताप कमा रहे हैं इस प्रकार अपने पावन दिन को और अधिक पावन बनाने का अद्भुत अवसर संत राम बालक दास जी द्वारा सभी भक्तों को दिया जा रहा है
जितेंद्र राठौर जी (राजस्थान) ने जिज्ञासा रखी की, क्रोध और ईर्ष्या क्या है?
गुरुदेव आज के कलयुग में ऐसा क्या है जिसके त्याग से आप क्रोध और ईर्ष्या को कम कर सकते है। बाबाजी ने इस विषय को स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में क्रोध एवं ईर्ष्या की प्रबलता बहुत अधिक व्याप्त है जिसके कारण परिवार में वैमनस्यता लड़ाई झगड़े एवं क्लेश का माहौल बना हुआ है, यह दोनों ही मनुष्य के बहुत बड़े शत्रु हैं इन दोनों शत्रु को जीतना है तो रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने बताया है कि यदि क्रोध से जितना हो तो अहंकार का त्याग करो और ईर्ष्या को हराना है तो स्वार्थ का त्याग करो, जहां पर अहंकार होता है वहां क्रोध पैदा होता है क्योंकि अहंकार की बस में हम अपने आप को सर्वोपरि मानते हैं, अपनी ही बात सच होती है तथा उसे दूसरों पर थोपना ही हमारी परंपरा बन जाती है जिसकी पूर्ति ना होने पर हमें क्रोध आता है और हम अनेक पाप के भागी बन जाते हैं, इसलिए क्रोध को हराने हेतु अहंकार का नाश करना आवश्यक है, उसी प्रकार दूसरों की संपत्ति, प्रगति उन्नति को देखकर, खुश होना चाहिए ना कि उससे ईर्ष्या या जलन भाव रखना चाहिए, ईश्वर ने जो हमें दिया है उसी में हमें संतोष करना चाहिए, इससे स्वार्थ भाव उत्पन्न नहीं होंगे, जब स्वार्थ भाव नहीं होगा तो इच्छा उत्पन्न नहीं होगी और इच्छा ही नहीं होगी तो ईर्ष्या अपने आप ही समाप्त हो जाएगी, जिससे आपके मन में अनेक उद्वेलन निरंतर चलते रहेंगे और आप अंदर ही अंदर समाप्त होते जाएंगे, अतः संतोषी जीवन जिए एवं अहंकार का त्याग करें!
पाठक परदेसी जी ने चर्म दृष्टि व आत्म दृष्टि पर प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की, इसे को स्पष्ट करने के लिए बाबा जी राजा जनक जी की एक छोटी सी कथा सभी को सुनाएं, राजा जनक जी ने स्वप्न में देखा कि उनका संपूर्ण राज्य पाट समाप्त हो चुका है और वे भूख से व्यथित इधर-उधर भटक रहे हैं तभी किसी ने उन्हें मिट्टी के घड़े में दाल चावल दिए जिसे पकाकर वे खिचड़ी बनाने लगे परंतु उनकी भूख इतनी अधिक थी कि वे अध पके चावल को ही खाने लगे तब दो बैल लड़ते हुए वहां आए तथा उनके मुंह का निवाला भी गिरा दिया और संपूर्ण खिचड़ी जाकर मिट्टी में मिल गई तब अचानक ही उनकी निद्रा खुली और उन्होंने देखा कि मैं इतना अधिक भूख से व्यथित कैसे हो सकता हूं, और मेरी इस प्रकार की दशा कैसे हो सकती है, और वह दूसरे दिन दरबार में गये तो वह अत्यंत चिंतित थे और उसका मन भी दरबार में नहीं लग रहा था, तब दरबार में उपस्थित सभी मंत्री गण दरबारियों ने उनकी इस व्यथा को देखा और सभी ने चिंता पूर्वक उनसे प्रश्न किया तब वह बार-बार एक ही प्रश्न किये जा रहे थे, यह सत्य है या वह सत्य है, मंत्री गणों ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई कि जो भी राजा जनक के इस प्रश्न का उत्तर देगा उसे इनाम स्वरूप जो भी मांगेगा वह मिलेगा, जो इसका उत्तर नहीं दे पाएगा वह कारावास में भी जाएगा, दूर-दूर से विद्वान संत गण आए और वेद पुराण में इसका उत्तर ढूंढा परंतु उन्हें कुछ प्राप्त नहीं हुआ और कारावास में विद्वानों की गिनती बढ़ती ही गई, यहां बात अष्टवक्र, जी ने सुनी और वहां दरबार में उपस्थित हुए राजा जनक जी ने उनका स्वागत किया बाकी सब उनकी स्थिति देखकर क्योंकि वह बचपन से लहराते हुए चलते थे सभी उन्हें देख हंसने लगे तब अष्टवक्र जी ने राजा जनक से एक प्रश्न पूछने की विनती की तो राजा जनक जी ने उनसे कहा आप तो मेरे प्रश्न का उत्तर देने आए हैं फिर भी आप पूछिए तब राजा जनक जी से अष्टावक्र ने कहा आपके दरबार में कोई भी व्यक्ति ना तो संत है ना ही विद्वान है यह सभी चमार है, राजा जनक जी आश्चर्य में पड़ गए और सभी सभा गण भी कि अष्टवक्र जी इस तरह से कैसे बोल सकते हैं, अष्टवक्र जी ने कहा क्योंकि आप की सभा में यदि कोई संत होता तो वह ऊपर के चर्म को देख कर इस तरह से हंसता नहीं इसीलिए यह ऊपरी चर्म को देखने वाले सभी चमार है, राजा जनक सुनिए, आपका प्रश्न था क्या यह सत्य है या वह सत्य है तो सुनिए दोनों ही बात सत्य नहीं है जो आपने रात्रि में सपने में देखा ना तो वह सत्य था क्योंकि वह भ्रम है और जो आप आज अपने दरबार में राज पाट और संसार की इस माया को देख रहे हैं यह भी एक भ्रम है इस प्रकार ना तो आपका सपना सत्य था ना ही यह जगत सत्य है, सत्य हैं तो मात्र केवल एक परमात्मा-ब्रह्म और सत्य है तो केवल सनातन है!
इस प्रकार किसी के ऊपरी रूप को देखकर मोहित हो जाना उस पर आसक्त हो जाना,चर्म दृष्टि है, उस व्यक्ति के अंदर के आत्मज्ञान, आत्मबोध को देखना उसमें उपस्थित भीतरी भाव का ज्ञान बोध कर लेना ही संत प्रवृत्ति है, परमात्मा प्रवृत्ति है, और यही आत्मा दृष्टि है यही सच्ची मानव दृष्टि है कि आप कभी भी किसी की रूप को ना देखें उसके गुण को देखें!!!